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पत्थर पर भी प्यार जताया करते हैं
इक नूतन संसार बसाया करते हैं
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लज्जत तुमको यार तनिक तो देंगे ही
दिल से हम असआर पकाया करते हैं
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तनहा हमको आप समझना लोगो मत
हम गम का दरवार लगाया करते हैं
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कुबड़ी अपनी पीठ हुई मत पूछो क्यों
यादों का हम भार उठाया करते हैं
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अश्कों से मत पूछ जिगर तक आजा तू
आँसू केवल सार बताया करते हैं
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जीवन बीता किंतु न समझे यारो हम
कैसे दिल के तार बजाया करते हैं
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मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’
Comment
आ० धामी जी
सुन्दर साफ़ सुथरी गजल i बहत बहुत मुबारक i
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! |
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