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तेरी आँखों में डूबा था यही अपराध था मेरा
जरा सी बात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--1
ये बिखरी जुल्फ मैं तेरी ,सँवारू हाथ से अपने
मेरे जज्बात पर तूने सजा-ए- मौत लिख डाली--2
सिले हैं होठ क्यों तूने शिकायत की बजह क्या है
मिलन की रात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--3
तेरे होठों से होठों को जलाकर देख लेता मैं
मगर हर-बात पर तूने सजा-ए-मौत लिखडाली--4
बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम
मगर बरसात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--5
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी शुक्रिया
आदरणीय khursheed khairadi जी शुक्रिया
बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम
मगर बरसात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--5
आदरणीय उमेश जी उम्दा ग़ज़ल हुई है ,सादर अभिनन्दन |
बहुत बढिया गज़ल कही भाई उमेश कटारा जी , हार्दिक बधाई ।
आदरणीय Hari Prakash Dubeyजी शुक्रिया
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी शुक्रिया
आदरणीय Shyam Mathpalजी आभार
आदरणीय maharshi tripathi जी आभार
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आभार
आदरणीय उमेश जी खूबसूरत ग़ज़ल है....... बहुत सुन्दर बधाई आपको .... सादर
जहाँ सुकरात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली
नए हालात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली
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