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तेरी आँखों में डूबा था यही अपराध था मेरा
जरा सी बात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--1
ये बिखरी जुल्फ मैं तेरी ,सँवारू हाथ से अपने
मेरे जज्बात पर तूने सजा-ए- मौत लिख डाली--2
सिले हैं होठ क्यों तूने शिकायत की बजह क्या है
मिलन की रात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--3
तेरे होठों से होठों को जलाकर देख लेता मैं
मगर हर-बात पर तूने सजा-ए-मौत लिखडाली--4
बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम
मगर बरसात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--5
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम
मगर बरसात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली--5,,,,,,,,,,,बहुत खूबसूरत गजल आ.उमेश कटारा जी |
Aadarniya Katara Ji,
Har bar tune maut likh dali. Sundar rachna badhai.
Aah Aah kahte the ham,Jakhm deta raha jamana,
Ham Rote huwe chal base, Woh-- Woh kahata hain Jamana.
आ 0 कटारा जी
मगर हर-बात तूने सजा-ए-मौत लिखडाली--4-------------------- मुझी लगता है इसमें ' पर' शब्द छूट गया है i गजल बेहतरीन है i सादर i
वाह, आदरणीय उमेश जी खूबसूरत ग़ज़ल है
बडी मुश्किल से गुजरा था खिजाओं से भरा मौसम
मगर बरसात पर तूने सजा-ए-मौत लिख डाली...बहुत सुन्दर बधाई आपको ! सादर
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