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जहाँ में वक्त के माफिक हवायें भी बदलती हैं
नजर पर मत भरोसा कर निगाहें भी बदलती हैं
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बहारों से लगाकर दिल अभी पगला गया है तू
खिजाँ से दोस्ती करले फिजायें भी बदलती हैं
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लगे जो आज अपना सा पता क्या कब मुकर जाये
नये जब यार मिल जायें , दुआयें भी बदलती हैं
..
कभी चाँदी ,कभी सोना ,कभी नोटों,के बिस्तर पर
मुहब्बत तड-फडाती है ,वफायें भी बदलती हैं
..
मुझे मालूम है मेरा अभी तक मर्ज है वो ही
मगर क्यों रोज फिर मेरी दवायें भी बदलती हैं
..
तजुर्बा है मेरा लम्बा ,कहानी है मेरी अपनी
समय के साथ दुनिया की दिशायें भी बदलती हैं
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय rajesh kumariजी बहुत बहुत शुक्रिया
अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० उमेश कटारा जी हार्दिक बधाई
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंहजी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज भंडारीजी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय Shyam Mathpalजी बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी बहुत बहुत शुक्रिया आप के स्नेह और मार्गदर्शन का ही नतीजा है सर
आ० कटारा जी . मैं तो अब आपका फेन होता जा रहा हूँ . सादर .
Aadarniya Umesh Katara ji,
Kya baat kahi aapne ... kis andaz se...Dil ko chu gaee. Aapko bahut-2 badhai.
अच्छी गज़ल के लिये बधाइयाँ ! आ. कटारा भाई ।
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