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बातो  के लच्छे लाये

यारो दिन अच्छे लाये

 

भारत को फिर से तुमने

दिन में नक्षत्र दिखाये  

 

संसार पसारे  आँचल

तुमने बहु नाच नचाये

 

पहले नजरे की ऊंची

अब फिरते आँख चुराये 

 

हम अपना दर्द सुनाते

तुम अपनी जाते गाये

 

दूरागत ढोल सुहाने

जब जाना तब पछताये

 

थे रंक, बनाया राजा

तुम हम पर ही गुर्राये

 

ईश्वर देखेगा तुमको

हम नत है आँख झुकाये

 

उतरेगा यह भी इक दिन

जो परचम हो लहराये 

 

सत्ता मिटती है उसकी

जिसको माँ याद न आये

 

सोया है जिन्न यहाँ पर

जन-तंत्र न यह जग जाए     

 

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 5:48am

काहें हो.. काहें खिसियाये हैं ? ..

ई कहाँ लिखा है जे कवी-सायर को जेतना खीस बरा रहेगा ओतने ऊ नीमन (अच्छा) कवी-सायर होगा ?
साहेब गजलियाइयेगा कि खिसियाइयेगा ?

जय होऽऽ .. :-)))

बधाई, आदरणीय. किन्तु, प्रवाह को और साधने की आवश्यकता है. 

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 17, 2015 at 8:09pm

छोटी बह्र में बहुत अच्छी गज़ल कही है , बधाइयाँ आपको ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:45pm

आ० हरि  प्रकाश जी

आपका सादर आभार  .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:44pm

आ० विजय सर !

आपका आशीष मिलता रहे . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:43pm

आ० वर्मा जी

सादर आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:43pm

आ० मठपाल जी

आ आपका हार्दिक आभार  .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:42pm

आ० अनुज भंडारी जी

आपका समर्थन पाकर मई धन्य हुआ . सादर.

Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 7:39pm

आदरणीय डॉक्टर गोपाल सर ,बेहतरीन रचना की प्रस्तुति के लिये बधाई !

/भारत को फिर से तुमने

दिन में नक्षत्र दिखाये/...

/संसार पसारे  आँचल

तुमने बहु नाच नचाये/

/थे रंक, बनाया राजा

तुम हम पर ही गुर्राये/

बहुत ही बढ़िया अनेको सन्देश देती हुई आपकी लाजवाब रचना ! सादर

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2015 at 6:13pm
ग़ज़ल भी व्यंग भी , बहुत अच्छा है, आदरणीय डॉ o गोपाल नारायण जी , बधाई, सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on March 16, 2015 at 4:36pm

इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई 

सादर 

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