बह्र : १२२२ १२२२ १२२२
पड़े चंदन के तरु पर घोसला रखना
तो जड़ के पास भूरा नेवला रखना
न जिससे प्रेम हो तुमको, सदा उससे
जरा सा ही सही पर फासला रखना
बचा लाया वतन को रंगभेदों से
ख़ुदा अपना हमेशा साँवला रखना
नचाना विश्व हो गर ताल पर इनकी
विचारों को हमेशा खोखला रखना
अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम
सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय धर्मेन्द्रजी, आपका नये खयालों से कौतुक करना रुचता तो है ही हमें आपकी ऐसी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा भी रहती है.
इस ग़ज़ल के मतले ने देर तक अपनी कहन के ज़ोर पर बाँधे रखा. क्या बात है साहब ! मतलेके भूरे नेवले ने कमाल किया हुआ है !
ऐसा ही शेर है
बचा लाया वतन को रंगभेदों से
ख़ुदा अपना हमेशा साँवला रखना !
भाई वाह ! ख़ुदा को रंगों से सजाना रोमांचित कर रहा है.
इस ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिये.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! |
बहुत सुन्दर रचना हुई आपकी
नचाना विश्व हो गर ताल पर इनकी
विचारों को हमेशा खोखला रखना --क्या बात
अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम
सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना -- लाजवाब बात कही !! आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , ग़ज़ल भी खूब कही है , बधाइयाँ ॥
वाह वाह आदरणीय धर्मेन्द्र जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई निवेदित है
वाह वाह, बहुत सुन्दर, अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकारें.
अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम
सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना---------बहुत सुन्दर धर्मेन्द्र जी सादर .
Aadarniya Dharmendra Kumar singh ji,
अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम
सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना - Kya kahne.. bahut sundar.... badhai.
आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी बहुत सुन्दर ,
अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम
सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना........वाह , बधाई आपको इस रचना पर ! सादर"
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