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ग़ज़ल : सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना

बह्र : १२२२ १२२२ १२२२

 

पड़े चंदन के तरु पर घोसला रखना

तो जड़ के पास भूरा नेवला रखना

 

न जिससे प्रेम हो तुमको, सदा उससे

जरा सा ही सही पर फासला रखना

 

बचा लाया वतन को रंगभेदों से

ख़ुदा अपना हमेशा साँवला रखना

 

नचाना विश्व हो गर ताल पर इनकी

विचारों को हमेशा खोखला रखना

 

अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम

सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना

-------

(मौलिक एवं अप्रकाशित) 

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2015 at 5:14am

आदरणीय धर्मेन्द्रजी, आपका नये खयालों से कौतुक करना रुचता तो है ही हमें आपकी ऐसी प्रस्तुतियों की प्रतीक्षा भी रहती है.

इस ग़ज़ल के मतले ने देर तक अपनी कहन के ज़ोर पर बाँधे रखा. क्या बात है साहब ! मतलेके भूरे नेवले ने कमाल किया हुआ है !

ऐसा ही शेर है
बचा लाया वतन को रंगभेदों से
ख़ुदा अपना हमेशा साँवला रखना !
भाई वाह ! ख़ुदा को रंगों से सजाना रोमांचित कर रहा है.

इस ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिये.

Comment by Shyam Narain Verma on March 17, 2015 at 3:50pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!
Comment by Nidhi Agrawal on March 17, 2015 at 3:17pm

बहुत सुन्दर रचना हुई आपकी 

नचाना विश्व हो गर ताल पर इनकी

विचारों को हमेशा खोखला रखना --क्या बात 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 17, 2015 at 11:41am

अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम

सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना  -- लाजवाब बात कही !! आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , ग़ज़ल भी खूब कही है , बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 17, 2015 at 10:16am

वाह वाह आदरणीय धर्मेन्द्र जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई निवेदित है 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 16, 2015 at 10:14pm
हौसलों के लिए
बच्चा बन के रहना ,
नज़र चन्दा मामाँ पे
पैर जमीन पे रखना ॥
बधाई , आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी, सादर।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 16, 2015 at 9:26pm

वाह वाह, बहुत सुन्दर, अच्छी ग़ज़ल हुई है. बधाई स्वीकारें.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 8:32pm

अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम

सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना---------बहुत सुन्दर धर्मेन्द्र जी  सादर .

Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 7:04pm

Aadarniya Dharmendra Kumar singh ji,

अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम

सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना -  Kya kahne.. bahut sundar.... badhai.

Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 7:01pm

आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी बहुत सुन्दर ,

अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम

सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना........वाह , बधाई आपको इस रचना पर ! सादर"

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