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हिदायत से ग़रीबों का जहाँ आना मना होगा
यक़ीनन ही सियासत का वहाँ तम्बू तना होगा।
कमीशन बैठकर अपनी हज़ारों राय दे, लेकिन
बसेसर का जला क्यूँ घर, कभी तो देखना होगा।
हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब
कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।
किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन
सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।
लड़ाई कौम की खातिर, करो लेकिन ज़ुरूरी है
अकीदत में मुहब्बत का जरा घी डालना होगा।
नई ये मीडिया-सोशल, बरत लो सब मज़े लेकर
मगर बच्चा ये बिगड़ा है, संभलकर पालना होगा।
कभी हिम्मत नहीं करते कि अपनी आँख ही मल लें
उन्ही बेजार हाथों को घड़ी भर थामना होगा।
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुई है आ० गिरिराज जी एवं आ० डॉ गोपाल जी की बात से सहमत हूँ
जहाँ मुफ़लिस के आने का मेरे/सुनो यारों मना होगा कर सकते हैं
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर मिथिलेश जी
आदरणीय मिथलेश जी बहुत सुन्दर रचना हे बधाई स्वीकार करें
वाह , आदरणीय मिथिलेश भाई , संपूर्ण रचना ही सुन्दर है , ये शे'र विशेष प्रभावित कर रहे हैं ,
हमारे नाम की रोटी बटी किसको पता साहिब
कि अगली रोटियां कब तक मिलेगी पूछना होगा।
किसी ने दूर से पत्थर उछाला सूर्य पर, लेकिन
सितारों ने खबर क्यों की ये मसला जांचना होगा।....लाजवाब , बहुत बहुत बधाई आपको , सादर !
आदरणीय गिरिराज सर, ग़ज़ल की स्नेह और सराहना के लिए हार्दिक आभार ...
मतला सुधारता हूँ और आपने जो दो अन्य मिसरों में सुझाया है, वह सही है, उसे शब्दशः स्वीकार करते हुए संशोधन करता हूँ . मार्गदर्शन के हृदय से आभारी हूँ. सादर नमन
आदरणीय गुमनाम सर जी ग़ज़ल की सराहना के लिए आभारी हूँ, हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय सूबे सिंह सुजान जी हार्दिक आभार
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर, आपने सही कहा, ग़ज़ल का मतला कहन के हिसाब से त्रुटिपूर्ण है, आपके मार्गदर्शन अनुसार सुधार करता हूँ. ग़ज़ल की सराहना के लिए हार्दिक आभार, नमन.
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