1 धन बल का मद
धन के माया जाल में, लगे रहे दिन रेन
दुखियों के दुख देखकर, हुआ न मन बेचैन |
हुआ न मन बेचैन. ह्रदय न किसी का रोया
सुरा सुन्दरी जाम. जमा धन सभी डुबोया
सोचें अब हो दीन, काम आता निर्धन के
थी बापू की सीख, पड़े न मोह में धन के |
(2) दुर्लभ मानव जीवन
मानव दुर्लभ जन्म का, उचित करे उपयोग ,
तन मन धन हमको मिला, ऐसा दुर्लभ योग
ऐसा दुर्लभ योग, पूर्व कर्मों का फल है
करे यदि सदुपयोग, तभी वह मनुज सफल है
कहे संत कविराय, अधर्म बनाता दानव
करे सदा सद्कर्म, कर्म से बनता मानव |
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
छंद पसंद कर स्नेह देने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री गिरिराज भंडारी जी
छंद पसंद करने के लिए हार्दिक आभार श्री कृष्णा मिश्रा "जान" गोरखपुरी जी
अतिशय आभार आपका श्री हरी प्रकाश दुबे जी
छंद सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री श्याम नारायण वर्मा जी और श्री श्याम मठपाल जी
हार्दिक आभार आपका आद. डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
सादर
बहुत सुन्दर संदेश देती कुंडलिया रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय लक्ष्मण भाई जी ।
दुर्लभ मानव जीवन ये छंद बहुत ही पसंद आया! बहुत बहुत बधाईयां आदरणीय!
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर,सुन्दर रचना, इससे इस छंद को समझने में भी सहायता मिलेगी , हार्दिक बधाई ! सादर
आ० लडीवाला जी,
सुन्दर रचना के लिए बधाई.
सुन्दर कुंडलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई सादर |
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