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कुण्डलिया छंद - लक्ष्मण रामानुज

1 धन बल का मद 

धन के माया जाल में, लगे रहे दिन रेन

दुखियों के दुख देखकर, हुआ न मन बेचैन |

हुआ न मन बेचैन. ह्रदय न किसी का रोया

सुरा सुन्दरी जाम. जमा धन सभी डुबोया

सोचें अब हो दीन, काम आता निर्धन के

थी बापू की सीख, पड़े न मोह में धन के | 

(2) दुर्लभ मानव जीवन 

मानव दुर्लभ जन्म का, उचित करे उपयोग ,
तन मन धन हमको मिला, ऐसा दुर्लभ योग 
ऐसा दुर्लभ योग, पूर्व कर्मों का फल है          
करे यदि सदुपयोग, तभी वह मनुज सफल है  
कहे संत कविराय, अधर्म बनाता दानव

करे सदा सद्कर्म, कर्म से बनता मानव | 

(मौलिक व अप्रकाशित) 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 26, 2015 at 9:31am

छंद पसंद कर  स्नेह  देने के लिए  हार्दिक आभार  आपका श्री गिरिराज  भंडारी  जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 26, 2015 at 9:30am

छंद  पसंद करने के लिए हार्दिक  आभार  श्री कृष्णा मिश्रा "जान" गोरखपुरी जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 19, 2015 at 12:15pm

अतिशय  आभार आपका श्री  हरी प्रकाश दुबे जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 19, 2015 at 12:13pm

छंद सराहने के लिए हार्दिक  आभार  आपका श्री श्याम  नारायण वर्मा जी और श्री श्याम मठपाल जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 19, 2015 at 12:12pm

हार्दिक आभार  आपका आद. डॉ  गोपाल नारायण श्रीवास्तव  जी 

सादर 


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Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 10:41am

बहुत सुन्दर संदेश देती कुंडलिया रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय लक्ष्मण भाई जी ।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 18, 2015 at 10:15pm

दुर्लभ मानव जीवन  ये छंद बहुत ही पसंद आया! बहुत बहुत बधाईयां आदरणीय!
 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 18, 2015 at 8:57pm

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज लडीवाला सर,सुन्दर रचना, इससे इस छंद को समझने में भी सहायता मिलेगी , हार्दिक बधाई ! सादर 

Comment by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 8:48pm

आ० लडीवाला जी,

सुन्दर रचना के लिए बधाई.

Comment by Shyam Narain Verma on March 18, 2015 at 2:40pm

सुन्दर कुंडलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई

सादर 

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