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तिनका तिनका तार तार

गौर से देखो रेगिस्तान को 
मीलों दूर तक
बिखरा पडा है
अपनी सुन्दरता सँवारे हुये
कितनी सदियों से 
आँधी तूफानों से
अनवरत लडा है
कई बार साजिशें हुयीं है
सहरा की धूल को 
दूर उडा ले जाने की 
इसके अस्तित्व को 
हमेशा के लिये 
मिटाने की
पानी के लिये 
प्यासा ही जी रहा है
पानी ने भी कसर नहीं छोडी है
इसे बहाकर दूर ले जाने में 
कई बार गुजरा है 
इसके वक्ष स्थल से होकर
मगर रेगिस्तान का 
स्वाभिमान तो देखिये
चाहता तो सोख जाता 
समन्दर को
डुबो लेता खुद के अन्दर 
मगर गुजर जाने देता है 
दरिया के तूफान को 
नहीं पीता है 
पानी की बूँद तक भी 
अमर है रेगिस्तान
अमर है इसकी सुन्दरता 
अमर है इसका
तिनका तिनका तार तार
बिखर जाना 
जिसका प्रमाण है 
कितने ही युगों से
हजारों मील तक फैला रेेगिस्तान
मुझे भी 
अच्छा लगा इसी तरह 
बिखर जाना 
और मैं बिखर गया 
तिनका तिनका तार तार
अब लगने लगा हूँ शायद
पहले से ज्यादा सुन्दर
देखता हूँ खुद को खुद ही
अपने बिखरे हुये टुकडों में
बार बार


उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



Views: 820

Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 19, 2015 at 9:20pm

बहुत सुन्दर कटारा जी

भावपूर्ण रचना .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 9:11pm

सुन्दर रचना हेतु बधाई आ.उमेश जी 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 19, 2015 at 8:46pm

आप की इस कविता को पढ़ कर एक शेर याद आ गया!

या खुदा रेत के सहरा को समन्दर कर दे

या मेरी बहती आँखों को पत्थर कर दे!!

सुन्दर कविता पर हार्दिक बधाई आ० उमेश जी!

Comment by Shyam Mathpal on March 19, 2015 at 7:55pm

  आदरणीय उमेश कटारा जी,

  जिंदगी व रेगिस्तान का सुंदर चित्रण.  हार्दिक बधाई

Comment by umesh katara on March 19, 2015 at 7:07pm

शुक्रिया आदरणीय Dr. Vijai Shanker जी

Comment by umesh katara on March 19, 2015 at 7:07pm

शुक्रिया आदरणीय Shyam Narain Verma जी

Comment by umesh katara on March 19, 2015 at 7:06pm

शुक्रिया आदरणीय rajesh kumariजी

Comment by umesh katara on March 19, 2015 at 7:06pm

शुक्रिया आदरणीय गिरिराज भंडारी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 6:57pm

लाज्वाब रचना हुई है , आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय उमेश भाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 19, 2015 at 11:30am

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आ० उमेश कटारा जी. 

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