पुरवा बयार सी
मद भरे ज्वार सी
फूलो में जवा सी
स्पर्श में हवा सी
महुआ की गंध सी
पाटल सुगंध सी
आमों की बौर सी
करौंदे की झौर सी
नीम की महक सी
पलाश की दहक सी
टूटे मोर पंख सी
पूजागृह के शंख सी
मंदिर के दीप सी
मोती भरी सीप सी
जल भरे डोल सी
विद्युत् कपोल सी
लहराते व्याल सी
दृप्त इंद्रजाल सी
पावस की धार सी
राधा के प्यार सी
पतझड़ के अंत सी
सौरभ बसंत सी
हिम के शृंगार सी
रति के दुलार सी
जीवन में आयी तुम
दृग में समाई तुम
उपमा की माल सी
कैरव की डाल सी
आह i उन्मादिनी !
प्रिय मधुवादिनी
स्मृति विशेष हो
अंतस् में शेष हो ---
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
प्रिय कृष्णा जी
सादर आभार .
नीम की महक सी
पलाश की दहक सी
टूटे मोर पंख सी
पूजागृह के शंख सी
आह! लाजव़ाब आदरणीय आपका शब्दसंयोजन हमेशा मनमोहक आश्चर्य में डाल देता है!अभिनन्दन!
आ० मुकेश श्रीवास्तव
बहुत बहुत धन्यवाद .
आ० हरी प्रकाश जी
सादर आभार .
PYAREE AUR MOHAK RACHNA KE LIYE BADHAEE
आदरणीय डॉक्टर गोपाल नारायण सर , बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है , आपकी इस रचना से एक नया ज्ञान और प्राप्त हो गया , आभार ,इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई, सादर!
आ० वंदना जी
धन्यवाद . सादर.
आ० कल्पना जी
आभार. सादर.
निश्शब्द हूँ ..... आदरणीय सादर नमन
अद्भुत
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