डगर कठिन है
मंजिल से पहले पग रुकता है
फिर हौसलों के सहारे
एक-एक पग आगे बढता हूँ
गिरता हूँ, संभलता हूँ
क्या?
मंजिल भी
मेरे इस परिश्रम को देख रही होगी
क्या?
वह भी जश्न मनायेगी
मेरे वहाँ पहुँचने पर
कभी-कभी
ये उत्कण्ठा भी उत्पन्न हो जाती हैं
फिर विचार आता है!
मंजिल जश्न मनाये या ना मनाये
उसे पा तो लूँगा, उसे चुमूँगा
दुनिया को दिखाउँगा कि
इसी के लिए मैने अथक प्रयास किया है
और अनवरत ही चलता रहता हूँ
इक-इक पग बढाते हुए।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय पवन कुमार जी, इस सुन्दर प्रयास और सुन्दर रचना पर आपको हार्दिक बधाई ! सादर
बहुत सुंदर आदरणीय पवन कुमार जी बहुत बहुत बधाई
बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई आपको आ. Pawan Kumar जी |
प्रिय पवन !
क्या सुन्दर भाव बिखेरा है . यह हौसला है तो मंजिल जरूर मुस्कराएगी . स्नेह .
बहुत सुन्दर!सराहनीय!मन के भावों को बुनते रहिये धीरे-धीरे और निखार आएगा!
सुंदर प्रयास .बधाई.
बहुत सुंदर रचना बधाई आपको
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