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हीरा हूँ ........'इंतज़ार'

हर हीरा किसी हसीना के
गले का हार नहीं बनता !
हर हसीना के गले को
हीरों का हार नहीं मिलता !

कई हीरे ज़मी में दबे रहते हैं
कोयलों की गोद में
सोये पड़े रहते हैं !
उनको तराशने वालों का
औजार नहीं मिलता !

न कमी हसीना के हुस्न में है
न हीरों की गुणवत्ता में !
बस किस्मत के खेल हैं सारे
किसी को वोह मिल जाते हैं
और हमें प्यार नहीं मिलता !!

***************************

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 23, 2015 at 8:44pm

हर हीरा किसी हसीना के
गले का हार नहीं बनता !
हर हसीना के गले को
हीरों का हार नहीं मिलता !

नसीब को खूब परिभाषित किया आपकी कविता ने आदरणीय!हार्दिक बधाईयां!

Comment by somesh kumar on March 23, 2015 at 8:32pm

आप जैसे हीरे को जो नहीं पा सका ये उसकी बदकिस्मती ,बरहाल सरल पर स्पस्ट भाव वाली रचना पर बधाई 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 23, 2015 at 7:02pm
सुन्दर , बधाई, आदरणीय मोहन सेठी जी, वैसे
हर किसी को हीरा सूट करता ,
खुद जोखिम में रहता है ,
जहां रहता है ,
जोखिम पैदा करता है।
सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 5:10pm
आदरणीय गोपाल सर सटीक टिप्पणी।
आदरणीय मोहन जी प्रस्तुति पर बधाई।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2015 at 2:26pm

आ० मोहन सेठी जी

सकल पदार्थ है जग माही  कर्महीन नर पावत नाही .  सादर .

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