221 1222 221 1222
तू आज नहीं आयी तो जान ये जानी है
मैं रोज कहूँ ऐसा ये बात पुरानी है
......
कुछ वादे तेरे झूठे कुछ तोड दिये मैंने
ये कैसी मुहब्बत है ये कैसी कहानी है
...
बस चाँद सितारे हैं जो साथ जगे मेरे
उनके ही सहारे से अब याद भुलानी है
..
जिस रोज उतर जाये उस रोज चले आना
कुछ दिन ही चलेगा बस ये जोश जवानी है
....
सच यार कहूँ दिल से हैं बात ये सब झूठी
तेरा मैं दिवाना हूँ तू मेरी दिवानी है
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उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी शुक्रिया
आदरणीय Nidhi Agrawalजी शुक्रिया
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया
जी सर मिथिलेश जी आप की बात सिरोधार्य है आपसे क्या छुपता है
बहर
221 1222 221 1222 ही है
आप सभी सुधी जनों का बहुत आभार
आ० कटारा जी
मिथलेश जी 'बहर' की बात कर रहे हैं . सादर .
आदरणीय उमेशजी आप हमेशा अच्छा लिखते हो ..:) ये गजल भी अच्छी बनी
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