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इशारों को शरारत ही कहूं या प्यार ही समझूं
कहूं मरहम इसे या खंजरों का वार ही समझूं
कशिश बातों में तेरी अब अजब सी मुझ को लगती है
तेरी बातों को बातें ही या फिर इकरार ही समझूं
वो डर के भेडियों से आज मेरे पास आये हैं
कहूं हालात इसको या कि मैं ऐतवार ही समझूं
तेरी नजरों ने कैसी आग सीने में लगाई है
तुझे कातिल कहूं मैं या इसे उपकार ही समझूं
पड़े ओंठों पे ताले पलकें उठती और गिरती हैं
ये मेरी जीत है या इस को अपनी हार ही समझूं
नहीं खिड़की पे आती आजकल क्या बात है बोलो
यूं शर्माती हो तुम या मैं इसे इनकार ही समझूं
है पिघली बर्फ दिल की आँख से आंसू लगे बहने
सहेजूँ इनको मोती मान या बेकार ही समझूं
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गोपाल सर ..आप बड़ों का आशीर्वाद मिलता है तो दिल को बहुत सुकून मिलता है सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीया सविता जी ..आप सब की प्रतिक्रियाओं से ही रचना धर्मिता को नयी उर्जा मिलती है ,सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीय श्याम जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर
वो डर के भेडियों से आज मेरे पास आये हैं
कहूं हालात इसको या कि मैं ऐतवार ही समझूं
सुंदर हरेक शे'र गहन अर्थ और भावना लिए है |बधाई !
नहीं खिड़की पे आती आजकल क्या बात है बोलो
यूं शर्माती हो तुम या मैं इसे इनकार ही समझूं
वाह
पड़े ओंठों पे ताले पलकें उठती और गिरती हैं
ये मेरी जीत है या इस को अपनी हार ही समझूं क्या बात है! क्या बात है!
खुबसूरत गजल पर ढेरों बधाई!!आ० आशुतोष जी!
आदरणीय आशुतोष जी उम्दा और बेहतरीन ग़ज़ल हुई है, बह्र को गुनगुनाने में आनंद आ गया. हार्दिक बधाई निवेदित है. एक शेर बेबह्र लग रहा है देख लीजियेगा-
वो डर के भेडियों से आज मेरे पास आये हैं
कहूं हालात इसको या कि मैं ऐतवार ही समझूं
बहुत सुंदर आशुतोष जी .... बधाई
तेरे मुस्कुराने की अदा खींच लेती है मुझे
ये तेरी कशिश है या प्यार का पैगाम समझूं
आ०आशुतोश जी
कहाँ थे मित्र बहुत . मिस किया हमने . सुन्दर गजल कही आपने .
है पिघली बर्फ दिल की आँख से आंसू लगे बहने
सहेजूँ इनको मोती मान या बेकार ही समझूं
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