निशा की गहराती निद्रा में ,
गूँजा था जब ‘ माँ ‘ का स्वर |
चहुँ दिशाओं में देखा मैंने ,
न पाया कोई , अंदर बाहर न अम्बर ||
बोली वो पुन: आर्द्र स्वर में ,
माँ मैं तेरी अजन्मी बेटी |
तेरे अंतर्मन की व्यथित दशा ,
पलभर को भी न सोने देती ||
तेरे अश्रु की अविश्रांत धारा ,
जता रही घटना सारी |
कल होगा मेरा दुर्दांत अंत ,
भ्रूण हत्या की है तैयारी ||
जीवन के अंकुर का वृष्टिपात किया जिसने ,
आज वही उस का वज्रपात करने आया है |
पुत्र की लालसा का थाल सजाकर ,
मानवता की बली चढ़ाने आया है ||
माँ क्यों न समझाया तुमने ,
इस निर्मम जग को |
कि, मैं तुम्हारा ही अंश हूँ ,
तुम्हारा ही वंश हूँ ,
अपनी प्रतिभा का परचम सदा लहराया है ,
इसीलिए , मैं रंच भर भी न रंज हूँ ||
सिसकियों बीच निकली ‘माँ ’ की करुण पुकार ,
मेरी बेटी आ मैं तुझको कर लूँ भरपूर दुलार |
न लगा अभियोग पिता पर ,
उनका भी क्या दोष है |
बेटी होना इस जग में ,
स्वयं में ही एक शोक है ||
बेटी फ़िक्र एक नहीं ,
तू तो चिंता की गठरी है |
सुबह – शाम उसके सिवा ,
न कोई किसी का प्रहरी है |
वहशी गिद्धों की दुनिया में ,
बेटी सुरक्षित है कहाँ ?
दरिंदगी के दलदल से ,
मुक्त हो पाती वो कहाँ ?
पग – पग पर बेटी चिंता तेरी ,
चैन न लेने देती है |
फिर क्यों तू विवश तात को ,
दोषारोपित करती है |
बोली बेटी , मेरी प्यारी माँ ,
कितनी भोली हो तुम |
चंद घटनाओं की पीड़ा से ,
क्योंकर पीड़ित हो तुम ||
माँ , क्यों तुम भूल गईं ,
नारी की विपुल शक्ति को |
सबको जीवन देने वाली ,
आदिशक्ति की भक्ति को ||
माता हूँ मैं , जन्मभूमि हूँ मैं ,
दुर्गा हूँ , सिंह की सवारी हूँ मैं |
कल्पना , सानिया और मैरी कॉम ,
नर पर भी भारी हूँ मैं ||
माँ , स्वयं में विश्वास जगाओ ,
मेरे जीवन का साज सजाओ |
मुझको दे दो तुम पूरा आकार ,
मैं करूँगी तुम्हारा सपना साकार ||
मेरी तुमसे बस यही पुकार ,
मत करना मेरा तिरस्कार |
कर लो मुझको भी भरपूर दुलार ,
दे दो जीवन जीने का अधिकार ||
मौलिक व अप्रकाशित रचना
Comment
आप सभी के प्रेरणादायी वचनों हेतु हार्दिक आभार .....| विजी शंकर जी नाराज़ होने जैसी कोई बात ही नहीं है | आलोचनात्मक टिप्पणी सदैव ही प्रेरक का काम करती है |
आदरणीया अंजू मिश्र जी , बहुत बहुत बधाई आपको इस सुंदर प्रस्तुति पर ! शुभकामनायें
आदरणीया अंजू जी बहुत भावपूर्ण और करूण किन्तु प्रेरणास्पद रचना की प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनायें निवेदित है. बहुत अच्छी पंक्तियाँ है-
माँ , स्वयं में विश्वास जगाओ ,
मेरे जीवन का साज सजाओ |
मुझको दे दो तुम पूरा आकार ,
मैं करूँगी तुम्हारा सपना साकार ||
मेरी तुमसे बस यही पुकार ,
मत करना मेरा तिरस्कार |
कर लो मुझको भी भरपूर दुलार ,
दे दो जीवन जीने का अधिकार ||
प्रोत्साहन हेतु आभार ......
आ० अन्जू जी
बहुत भावपूर्ण रचना . एक गर्भस्थ बेटी की पुकार . करुण ,करुण, करुण !
इस सुंदर प्रस्तुति के लिए तहे दिल बधाई सादर |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online