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तुमसे अकेले में मुलाक़ात

आज झुरमुट से उजास में

शुभ्र नूतन सा गुलाबी प्रभात

तुम से की, शरमाते हुए ,

आज कितने दिनों के बाद

तुमसे अकेले में की मुलाक़ात

 

और अपलक रही थी निहार

गहरे सन्नाटे में जब तुम थे

बिल्कुल मेरे पास इस पार

किसी ने दबोचा अकस्मात

देख कर अकेले में

किन्तु ना फूटी मेरे मुख से बात

 

सुधियों की नौका में

भावनाओं की थी पतवार

जल-बिहार कर रहीं थी

इच्छाएँ बार-बार इस पार से उस पार

क्यों नहीं भूला मन मधुमास

जब बस तुम ही बसते थे मेरे-

रोम-रोम और सांस-सांस

और ये हार मैंने अभी स्वीकारी नहीं

क्यों की भावना संवेदना पर वारी नहीं

तुम हँसे थे एक बार

जब मैंने किया था खुद पर एतवार

मिली थी तुमसे नवपल्लव पर ओस सी

उतर आए थे तुम दिल की गहराई में

बन कर स्वर्णिम प्रकाश

 

और झरोखे में तुम झरते रहे

मेरी आँखों से बन कर अनुराग 

खिल रहा था मेरा केशरिया गात 

आज झुरमुट से उजास में

शुभ्र नूतन सा गुलाबी प्रभात

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

 

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 8:10pm

तुम हँसे थे एक बार

जब मैंने किया था खुद पर एतवार

मिली थी तुमसे नवपल्लव पर ओस सी

उतर आए थे तुम दिल की गहराई में

बन कर स्वर्णिम प्रकाश......सुन्दर रचना आदरणीया कल्पना मिश्रा जी ! हार्दिक बधाई 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 10:48pm

आदरणीय  Shyam Narain Verma  जी आप का आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 10:47pm

आ0 pratibha tripathi जी आप का बहुत आभार 

Comment by kalpna mishra bajpai on March 28, 2015 at 10:47pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर बहुत आभार आप का /सादर 

और मुझे खेद है कि मैं गलती बहुत करती हूँ इसके लिए क्षमा चाहती हूँ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 28, 2015 at 3:28pm

आ० कल्पना जी

अति सुन्दर भाव .

तुम हँसे थे एक बार

जब मैंने किया था खुद पर एतवार

मिली थी तुमसे नवपल्लव पर ओस सी

उतार आए थे तुम दिल की गहराई में

बन कर स्वर्णिम प्रकाश--------------------------बस गुलबी को गुलाबी कर ले . सादर .

Comment by Shyam Narain Verma on March 28, 2015 at 12:03pm

बहुत सुंदर रचना बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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