नूतन वर्ष सुहाना आता
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नूतन वर्ष सुहाना आता
माता की गोदी में चढ़ कर
मन ही मन हर्षाता
दिनकर चुनरी लाल उड़ाता
शीतल पवन झकोरे लाता
कच्ची कच्ची धूप मनोहर
मलिया शगुन सुनाता
बगिया की गोदी में खिल कर
दिवस मल्हारें गाता ।
कलियाँ खिल कर युवा हो गईं
झोली भर कर सुगंध ले आईं
अंगनाई उर महके चन्दन
तितली काया सौरभ धोई
भोर की गोदी सूरज चढ़ कर
स्वर्णिम छटा लुटाता ।
झरने की कल-कल निनाद
मन के मिट जाते विषाद
मैत्री की मंशा उर में ले
मिट जाते सारे कटु विवाद
अंबर की गोदी में चढ़ कर
चाँदनिया चाँद लुटाता ।
नूतन वर्ष सुहाना आता
माता की गोदी से चढ़ कर
मन ही मन हर्षाता
अप्रकाशित व मौलिक
कल्पना मिश्रा बाजपेई
Comment
अति सुन्दर। बधाई।
आदरणीया कल्पना जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है हार्दिक बधाई निवेदित है.
इन पंक्तियों में तुकांतता बाधित कर रही है रचना के सौन्दर्य को... मेरे हिसाब से... इसलिए निवेदन कर रहा हूँ-
कलियाँ खिल कर युवा हो गईं
झोली भर कर सुगंध ले आईं
अंगनाई उर महके चन्दन
तितली काया सौरभ धोई
सादर
आ0 Hari Prakash Dubey जी आप का आभार
आदरणीया कल्पना मिश्रा जी, इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ! सादर
अंबर की गोदी में चढ़ कर
चाँदनिया चाँद लुटाता ।
नूतन वर्ष सुहाना आता
माता की गोदी से चढ़ कर
मन ही मन हर्षाता.......वाह
आ० Er. Ganesh Jee "Bagi" सर आपका बहुत आभार /सादर
शब्द-शब्द मोती से गुथे हैं, सुन्दर और प्रभावशाली नवगीत पर बधाई आदरणीया कल्पना मिश्रा जी.
आ० maharshi tripathi जी आप का आभार /सादर
आ० Dr. Vijai Shanker जी आप का आभार /सादर
आ0 डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आपका आभार /सादर
आ० कल्पना जी
सुन्दर प्रस्तुति . सही शब्द 'मल्हार ' और 'मंशा' है .तितली काया सदली धोई ------ भाव स्पष्ट नही हो रहा . कविता में रमणीयता बहुत है . सादर .
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