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ग़ज़ल -नूर -मेरे यार तराज़ू निकले.

22/22/22/22 (सभी संभव कॉम्बीनेशंस)

यादो के जब पहलू निकले
जंगल जंगल आहू निकले.     आहू-हिरण
.
काजल रात घटाएँ गेसू
उसके काले जादू निकले.
.
जज़्बातों को रोक रखा था
देख तुझे, बे-काबू निकले.
.
चाँद मेरी पलकों से फिसला   
आँखों से जब आँसू निकले.
.
तेरे ग़म में जब भी डूबा, 
मयखानों के टापू निकले. 
.
भीग गया धरती का आँचल  
अब मिट्टी से ख़ुशबू निकले.
.
तौल रहे थे मेरी हस्ती
मेरे यार तराज़ू निकले.
.
रात हवेली फिर रौशन थी
बोतल निकली काजू निकले.
.
बात चली जब इन्कलाब की 
तुम सरकारी बाबू निकले.

हमें रिझाने इन्तिख़ाब में 
हिटलर और हलाकू निकले.

नूर अँधेरे से लड़ने को
कुछ मतवाले जुगनू निकले.
.
नूर 

मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 788

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 3:26pm

शुक्रिया आ. 
लय की रौ में हो गया शायद..और फिर ऐसा पढ़ते सुनते आदत बन गयी शायद 
सुधार लेता हूँ..
सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 3:16pm

जय हो.. अपनी बात आप खूब कह लेते हैं.. :-)))

जजबातों  क्यों किया हुज़ूर ?

कई शेर कोटेबल हैं.. कई शेर ..  दिल से दाद दाद दाद दाद बोल रहा हूँ.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 9:54am

शुक्रिया आ. श्याम जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 1, 2015 at 9:53am

शुक्रिया आ. कृष्ण जी 

Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 8:18pm

आदरणीय निलेश नूर जी,

 बहुत खूब ... बधाई.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 5:26pm

सभी संभव कॉम्बीनेशंस जादू निकले!दिली दाद कबूल फरमाए आदरणीय!

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 31, 2015 at 1:59pm

शुक्रिया आ. लक्षमण जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 31, 2015 at 6:08am

आ0 भाई नीलेश जी,,हमेशा की तरह इस बार भी बहुत ख़ूबसूरत,मुकम्मल,शानदार ग़ज़ल पेश की है आपने,हार्दिक बधाई l

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 30, 2015 at 8:09pm

शुक्रिया आ. हरि प्रकाश जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 7:48pm

आदरणीय निलेश नूर जी,बहुत खूबसूरत रचना है ,
काजल रात घटाएँ गेसू 
उसके काले जादू निकले....वाह ... 
तौल रहे थे मेरी हस्ती 
मेरे यार तराज़ू निकले......बहुत बढ़िया 
रात हवेली फिर रौशन थी 
बोतल निकली काजू निकले.....शानदार

बात चली जब इन्कलाब की 
तुम सरकारी बाबू निकले.......लाजवाब 

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