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बहुत हो चुकी हैं शराफत की बातें
चलो अब करें कुछ व़गाव़त की बातें
....
हसद है उन्हें अब मेरी शौहरतों से
जो करते कभी थे रियाज़त की बातें
.....
दफन है बहुत आग सीने में जिसके
वो कैसे करेगा नज़ाकत की बातें
.....
बुजुर्गों की सेवा जरूरी बहुत है
करो सिर्फ इनकी इवादत की बातें
......
मुआफी के काबिल नहीं बेवफाई
न मुझसे करो तुम नदामत की बातें
......
जिसे जिन्दगी देके मैंने बचाया
वो करने लगा है खिलाफत की बातें
रियाजत --समर्पण
हसद-जलन
नदामत--पश्चाताप
अदावत -दुश्मनी
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
दफन है बहुत आग सीने में जिसके
वो कैसे करेगा नज़ाकत की बातें
वाह आदरणीय बहुत बढ़िया
आदरणीय narendrasinh chauhan जी शुक्रिया
आदरणीय Nazeel जी शुक्रिया
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी शुक्रिया
आ० कटाराजी
बेहतरीन गजल . वाह !
अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय उमेश भाई जी
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