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अंदर अंदर रोता हूँ मैं, ऊपर से मुस्काता हूँ,

गजल लिखने का प्रयास मात्र है, कृपया सुधारात्मक टिप्पणी से अनुग्रहीत करें  

अंदर अंदर रोता हूँ मैं, ऊपर से मुस्काता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.


आश लगाये बैठा हूँ मैं, अच्छे दिन अब आएंगे,
करता हूँ मैं सर्विस फिर भी, सर्विस टैक्स चुकाता हूँ.


राम रहीम अल्ला के बन्दे, फर्क नहीं मुझको दिखता,
सबके अंदर एक रूह, फिर किसका खून बहाता हूँ.


रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, राह खुदा का पाता हूँ.


हिंसा करना, शोर मचाना, ऐसी भी कोई पूजा है
प्रेम तत्व को खुद न समझा, औरों को समझाता हूँ.


तेरा मेरा उसका सबका, भेद बहुत ही है गहरा
इन भेदों से ऊपर उठकर, अखिल विश्व पा जाता हूँ

 (मौलिक व अप्रकाशित)

- जवाहर लाल सिंह 

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:19pm

आदरणीय श्री गोपाल नारायण जी अगर आपलोगों का मार्ग दर्शन साथ रहेगा तो रफ़्तार अवश्य बढ़ेगी ..सादर!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 2, 2015 at 9:18pm

आदरणीय नीलेश जी, सादर अभिवादन! 

आपके अनुसार पहली पंक्ति - अंदर अंदर रोता हूँ मैं, बाहर मुस्कुराता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.

और 

रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, साथ खुदा का पाता हूँ.

कर दिया जाय तो यह गजल कही जा सकती है 

बाकी तकनीक में बाद में जाऊँगा, मगर आपलोगों का मार्गदर्शन रहेगा तो मैं निश्चित ही आगे प्रयास करता रहूँगा ...सादर! 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 2, 2015 at 8:30pm
आस लगाये बैठा हूँ मैं, अच्छे दिन अब आएंगे,
करता हूँ मैं सर्विस फिर भी, सर्विस टैक्स चुकाता हूँ.
बहुत ही सही प्रत्यावेदन। बहुत खूब, आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी,बहुत बहुत बधाइयां , सादर।
Comment by Shyam Mathpal on April 2, 2015 at 8:05pm

आदरणीय जवाहर जी,

सुंदर रचना के लिए दिल से बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2015 at 4:35pm

आदरणीय जवाहर भाई , गज़ल का प्रयास सराहनीय है , बातें भी खूब कही हैं , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by MAHIMA SHREE on April 2, 2015 at 4:13pm

बहुत खूब जवाहर सर .... बहुत-2 बधाई.. पहली ग़ज़ल पर आदरणीय. ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 2, 2015 at 3:46pm

इस रचना पर बधाई आपको 

आदरणीय नीलेश जी से सहमत हूँ.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 2, 2015 at 12:25pm

आ० जवाहर लाल जी

नीलेश जी ने आपको हरी झंडी  दे दी . अब तो रफ्तार बढनी  चाहिए .सादर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2015 at 12:12pm

बहुत खूब आ. जवाहर जी 
मुझे लगता है सही शब्द मुस्कुराता है, मुस्काता के स्थान पर 
राह ख़ुदा का नहीं ख़ुदा की होगा ..शायत टाइपिंग एरर है ..
थोडा और समय दीजीये रचनाओं को. आप सही मार्ग पर हैं ..
बधाई और शुभकामनाएँ 

Comment by Shyam Narain Verma on April 2, 2015 at 11:50am
इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें

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