गजल लिखने का प्रयास मात्र है, कृपया सुधारात्मक टिप्पणी से अनुग्रहीत करें
अंदर अंदर रोता हूँ मैं, ऊपर से मुस्काता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.
आश लगाये बैठा हूँ मैं, अच्छे दिन अब आएंगे,
करता हूँ मैं सर्विस फिर भी, सर्विस टैक्स चुकाता हूँ.
राम रहीम अल्ला के बन्दे, फर्क नहीं मुझको दिखता,
सबके अंदर एक रूह, फिर किसका खून बहाता हूँ.
रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, राह खुदा का पाता हूँ.
हिंसा करना, शोर मचाना, ऐसी भी कोई पूजा है
प्रेम तत्व को खुद न समझा, औरों को समझाता हूँ.
तेरा मेरा उसका सबका, भेद बहुत ही है गहरा
इन भेदों से ऊपर उठकर, अखिल विश्व पा जाता हूँ
(मौलिक व अप्रकाशित)
- जवाहर लाल सिंह
Comment
आदरणीय श्री गोपाल नारायण जी अगर आपलोगों का मार्ग दर्शन साथ रहेगा तो रफ़्तार अवश्य बढ़ेगी ..सादर!
आदरणीय नीलेश जी, सादर अभिवादन!
आपके अनुसार पहली पंक्ति - अंदर अंदर रोता हूँ मैं, बाहर मुस्कुराता हूँ,
दर्द में भीगे स्वर हैं मेरे, गीत खुशी के गाता हूँ.
और
रस्ते सबके अलग अलग है, मंजिल लेकिन एक वही,
सेवा करके दीन दुखी का, साथ खुदा का पाता हूँ.
कर दिया जाय तो यह गजल कही जा सकती है
बाकी तकनीक में बाद में जाऊँगा, मगर आपलोगों का मार्गदर्शन रहेगा तो मैं निश्चित ही आगे प्रयास करता रहूँगा ...सादर!
आदरणीय जवाहर जी,
सुंदर रचना के लिए दिल से बधाई .
आदरणीय जवाहर भाई , गज़ल का प्रयास सराहनीय है , बातें भी खूब कही हैं , हार्दिक बधाइयाँ ।
बहुत खूब जवाहर सर .... बहुत-2 बधाई.. पहली ग़ज़ल पर आदरणीय. ...
इस रचना पर बधाई आपको
आदरणीय नीलेश जी से सहमत हूँ.
आ० जवाहर लाल जी
नीलेश जी ने आपको हरी झंडी दे दी . अब तो रफ्तार बढनी चाहिए .सादर.
बहुत खूब आ. जवाहर जी
मुझे लगता है सही शब्द मुस्कुराता है, मुस्काता के स्थान पर
राह ख़ुदा का नहीं ख़ुदा की होगा ..शायत टाइपिंग एरर है ..
थोडा और समय दीजीये रचनाओं को. आप सही मार्ग पर हैं ..
बधाई और शुभकामनाएँ
इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें |
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