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दस दॊहॆ,,,,,(माँ)
===========
प्रथम खिलायॆ पुत्र कॊ,बचा हुआ जॊ खाय !
दॊ रॊटी कॊ आज वह, घर मॆं पड़ी ललाय !! (१)

दूध पिलाया जब उसॆ, सही वक्ष पर लात !
वही पुत्र अब डाँट कर, करता माँ सॆ बात !! (२)

सूखॆ वसन सुलाय सुत,रही शीत सिसियात !
चिथड़ॊं मॆं अँग अँग ढँकॆ, जागी सारी रात !! (३)

नज़ला खाँसी ताप या, गर्म हुआ जॊ गात !
एक छींक पर पुत्र की, जगतॆ हुआ प्रभात !! (४)

गहनॆ गिरवी धर दियॆ, जब जब सुत बीमार !
मज़दूरी कर कर भरा, फिर भी चढा उधार !! (५)

आज पड़ी जब खाट मॆं, चाह रही उपचार !
पॊता - पॊती सुत वधू, दॆं उस कॊ दुत्कार !! (६)

काँख दबायॆ लाल कॊ, फिरी खॆत अरु हाट !
भीख माँगती आज वह, बॆ-वश काशी घाट !! (७)

जिसनॆं जन्मा कॊंख सॆ, रही कष्ट वह काट !
श्वान शयन बिस्तर करॆ, माँ कॊ टूटी खाट !! (८)

वृद्धाश्रम मॆं कट रहा, पल - पल उसका रॊय !
किन्तु माँगती दुआ है, बुरा न सुत का हॊय !! (९)

मात पिता कॊ कष्ट दॆ, बाँधॆ सुख कॆ सॆतु !
‘राज़’ नरक मॆं ठौर है, पातक सुत कॆ हॆतु !! (१०)

"राज बुन्दॆली"

मौलिक व अप्रकाशित,,,,,,,

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 7, 2015 at 11:51pm

इस प्रयास पर बधाइयाँ आदरणीय राज बुन्देली जी.

वैसे अंग और अँग के अन्तर पर ग़ौर करें. अंग कभी अँग नहीं लिखा जा सकता. उस हिसाब से वह दोहा दोषयुक्त है.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 9:39am

इस रचना पर आपको नमन!अभिनन्दन! आदरणीय!

Comment by Shyam Mathpal on April 6, 2015 at 8:13pm

आ० बुन्देली जी,

हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 6, 2015 at 4:36pm

आदरणीय राज बुन्देली जी भावपूर्ण दोहावली पर हार्दिक बधाई 

Comment by Nirmal Nadeem on April 6, 2015 at 1:11pm

BAHUT KHOOOB WAAAH WAAAAH. MUBARAK HO

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2015 at 10:44am

आ० भाई राज बुंदेली जी , यथार्थ और भावपूर्ण दोहों के लिए कोटि कोटि बधाई .

Comment by Nazeel on April 6, 2015 at 9:57am

आदरणीय  कवि  राज बुंदेली  जी  सुन्दर रचना  के लिए  हार्दिक बधाई

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 6, 2015 at 8:59am
बधाई।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 6, 2015 at 8:50am

आ० बुन्देली जी

हम  आप से ऐसी ही सुन्दर सुगढ़ रचना की उम्मीद करते है i शिल्प और भाव दोनों ही अति उत्तम हैं . आपको बधाई  . सादर .

कृपया ध्यान दे...

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"वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी"
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