For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

बह्र : 221 2121 1221 212

 

रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है

पूँजी की ग्रोथ रेट सवाई हुई तो है

 

अपना भी घर जला है तो अब चीखने लगे

ये आग आप ही की लगाई हुई तो है

 

बारिश के इंतजार में सदियाँ गुज़र गईं

महलों के आसपास खुदाई हुई तो है

 

खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए

छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है

 

क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा

ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो है

 

वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा

इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है 

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 622

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 9, 2015 at 9:21pm

वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा

इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है 

बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ और भाव पूरी गजल संजीदा है सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 8, 2015 at 6:13pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी ..जिस ग़ज़ल को एक बार पढने के बाद फिर और फिर पढने की इच्छा हो जाये तो वाकई में उस ग़ज़ल में कुछ तो है ..आपका अंदाज बेहद पसंद आया ..गहरी चोट करती शसक्त रचना ..आपको ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Nazeel on April 8, 2015 at 2:55pm

बहुत अच्छी रचना हुई है धर्मेंदर  भाई जी  ढेरों   मुबारकबाद। … 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2015 at 11:12am

अभी थोड़ी देर पहले आपका नवगीत देख रहा था. अब यह ग़ज़ल. बहुत खूब !
वैसे मतले में प्रयुक्त शब्द और लहज़ा आपका खास अंदाज़ है. लेकिन जो कुछ आपने आखिरी शेर के माध्य्म से साझा किया है वह विभोर कर रहा है.
ढेर सारी दाद कुबूल करें, आदरणीय धर्मेन्द्रजी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 8, 2015 at 10:05am

बहुत सुंदर गज़ल है आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 7, 2015 at 9:44pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , आपकी सोच कुछ अलग ही हुआ करती है , आपकी गज़ल से कुछ न कुछ सीकह्ने को मिल जाता है ! बहुत सुन्दर !!  हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

Comment by वीनस केसरी on April 7, 2015 at 8:37pm

वर्षों से इस ज़मीन में कुछ भी नहीं उगा

इसकी लहू से ख़ूब सिंचाई हुई तो है

वाह भाई जी
तेवर को सलाम


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 7, 2015 at 7:34pm
आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है। एक एक अशआर कमाल का है। मतले और आखिरीसशेर पर विशेष बधाई। आपको पढ़कर सदैव प्रेरणा मिलती है।
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 7, 2015 at 7:01pm
खाली भले है पेट मगर ये भी देखिए
छाती हवा से हम ने फुलाई हुई तो है
क्या लिख दिया , बहुत सटीक, सुन्दर बधाई, आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी , सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 7, 2015 at 4:56pm

आ० धर्मेन्द्र जी 

सभी अश'आर बहुत बढ़िया हुए हैं .

ये दो मुझे ख़ास पसंद आये ...

अपना भी घर जला है तो अब चीखने लगे

ये आग आप ही की लगाई हुई तो है

क्यूँ दर्द बढ़ रहा है मेरा, न्याय ने दवा

ज़ख़्मों के आस पास लगाई हुई तो है

 बहुत बहुत बधाई स्वीकारिये 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
6 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service