२१२२ २१२२ २१२२ २१२
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बारिषॊं मॆं भीग जाना नित नहाना याद है !!
आसमां पर उन पतंगॊं का उड़ाना याद है !!(१)
टप-टपातीं बूँद बादल गरजतॆ आषाढ़ मॆं,
पॊखरॊं कॆ मध्य मॆढक टर-टराना याद है !!(२)
घॊड़ियॊं कॆ झुंड आतॆ थॆ कभी जब गाँव मॆं,
पूँछ उनकी खींचतॆ ही हिनहिनाना याद है !!(३)
श्रावणी त्यॊहार तॊ हॊता अनॊखा था बहुत,
लड़कियॊं का ताल मॆं कजली बहाना याद है!!(४)
खूब रॊतीं थी बहन भाई अगर मिलतॆ नहीं,
राखियॊं का हाँथ मॆं हमकॊ बँधाना याद है !!(५)
ताल नालॆ खॆत सब भादॊं भरॆ हॊतॆ मगर,
क्वाँर जैसी धूप मॆं वॊ हल चलाना याद है !!(६)
कार्तिकी मॆं स्नान कॊ जातीं बहू औ बॆटियाँ,
नारियॊं का भॊर मॆं नित गीत गाना याद है !!(७)
पूस का सारा महीना शीत का ढाता कहर,
रॊज उठ कर भॊर मॆं धूनी जलाना याद है !!(८)
माघ मॆलॆ दूर कॊसॊं हम चलॆ जातॆ मगर,
आठ आनॆ मॆं हिंडॊला झूल आना याद है !!(९)
लौटतॆ घर चार आनॆ जॆब मॆं बचतॆ नहीं,
गॆंद अच्छी सी रबर की साथ लाना याद है !!(१०)
जीत लातॆ थॆ कभी दॊ चार गॆंदॆं इस तरह,
हाँथ मॆं बंदूक फ़ुग्गॊं पर निशाना याद है !!(११)
झूम उठतॆ रंग फागुन फाग हॊली सॊचतॆ,
गाँव भर मॆं घूम करकॆ रँग लगाना याद है !!(१२)
रूठ जाता गर कभी कॊई अचानक यार तॊ,
आखिरी मॆं दॆ कसम उसकॊ मनाना याद है !!(१३)
खॆत सॆ हम काट लातॆ धास पाती रॊज थॆ,
गाय बछड़ॊं और भैसॊं कॊ खिलाना याद है !!(१४)
दूध दुहतॆ गाय जब थी बिदक जाती कभी,
जाँघ पॆ वॊ जॊर सॆ दॊ लात खाना याद है !!(१५)
चैत,खॆती जॊ पकी तॊ खॆत मॆं हँसिया लियॆ,
संग मॆं मज़दूर कॆ फ़सलॆं कटाना याद है !!(१६)
बैल गाड़ी लॆ चलॆ बाज़ार जातॆ और फ़िर,
ठाकुरॊं कॆ साथ मॆं सरपट भगाना याद है !!(१५)
साथ मॆं पॆड़ॊं तलॆ नित खॆलतॆ थॆ शाम कॊ,
आम कच्चॆ अधपकॆ सब तॊड़ लाना याद है !!(१८)
काँप उठती रूह प्यारॆ जॆठ औ बैशाख सॆ,
तॆज गर्मी दॊपहर मॆं तिलमिलाना याद है !!(१९)
मुफ़लिसी कॆ दौर मॆं घॆरॆ रहीं दुस्वारियाँ,
दर्द कॆ उस गाँव मॆं भी मुस्कुराना याद है !! (२०)
जल उठॆ थॆ गाँव तीनॊं क़ातिलॊ की चाल थी,
ख़न्ज़रॊं कॆ दाव सॆ खुद कॊ बचाना याद है !!(२१)
बॆ-धड़क था बस अँधॆरा क़ैद कर कॆ रॊशनी,
आँधियॊं कॆ बीच दीपक का जलाना याद है !!(२२)
वक्त बदला सॊच बदली आज कॆ इंसान की,
आदमी का आदमी पर तिलमिलाना याद है !!(२३)
साल बीतॆ हैं मगर सब दृश्य हैं ताज़ा वही,
अब तलक हमकॊ पुराना वॊ ज़माना याद है !!(२४)
याद अपनॆ गाँव की भूला नहीं यॆ ‘राज़’ भी,
बरगदॊं की छाँव मॆं बचपन बिताना याद है !!(२५)
"राज बुन्दॆली"
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अशआर की लड़ियों को खूब सजाया है आपने बेहतरीन ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको
सुन्दर प्रस्तुति पर ,,,बधाई ,,,कमाल कर दिया आपने आ.कवि - राज बुन्दॆली जी |
आदरणीय राज बुन्देली जी बहुत प्यारी और बचपन की याद दिलाने वाली सुन्दर ग़ज़ल हुई है आपको इस प्रस्तुति पर ढेर सारी बधाई
अगर शेर दर शेर बात करें तो-
बारिषॊं मॆं भीग जाना नित नहाना याद है !! ........ बारिशों में झूमकर वो भीग जाना याद है (नित नहाना चाहिए ये अच्छी बात है)
आसमां पर उन पतंगॊं का उड़ाना याद है !!(१)
टप-टपातीं बूँद बादल गरजतॆ आषाढ़ मॆं,............ गरजतॆ इसका वज्न 122 या 212 (मेरे हिसाब से गर्जते उच्चारित होता है तो 212)
पॊखरॊं कॆ मध्य मॆढक टर-टराना याद है !!(२)
घॊड़ियॊं कॆ झुंड आतॆ थॆ कभी जब गाँव मॆं,
पूँछ उनकी खींचतॆ ही हिनहिनाना याद है !!(३) ... वाह वाह जीवंत चित्र
श्रावणी त्यॊहार तॊ हॊता अनॊखा था बहुत,
लड़कियॊं का ताल मॆं कजली बहाना याद है!!(४) .... सुन्दर
खूब रॊतीं थी बहन भाई अगर मिलतॆ नहीं,
राखियॊं का हाँथ मॆं हमकॊ बँधाना याद है !!(५) ... वाह
ताल नालॆ खॆत सब भादॊं भरॆ हॊतॆ मगर,
क्वाँर जैसी धूप मॆं वॊ हल चलाना याद है !!(६) ....... बेहतरीन शेर
कार्तिकी मॆं स्नान कॊ जातीं बहू औ बॆटियाँ,..... बेबह्र सा लग रहा है देख लीजियेगा (में हटा सकते है क्योकि इस्नान उच्चारण होता है)
नारियॊं का भॊर मॆं नित गीत गाना याद है !!(७)
पूस का सारा महीना शीत का ढाता कहर,
रॊज उठ कर भॊर मॆं धूनी जलाना याद है !!(८)..... वाह वाह बहुत सुन्दर
माघ मॆलॆ दूर कॊसॊं हम चलॆ जातॆ मगर,
आठ आनॆ मॆं हिंडॊला झूल आना याद है !!(९).... वाह वाह यादों का हिंडोला
लौटतॆ घर चार आनॆ जॆब मॆं बचतॆ नहीं,
गॆंद अच्छी सी रबर की साथ लाना याद है !!(१०) ....... बेहतरीन शेर
जीत लातॆ थॆ कभी दॊ चार गॆंदॆं इस तरह,
हाँथ मॆं बंदूक फ़ुग्गॊं पर निशाना याद है !!(११) ........... हाथ ...... सुन्दर चित्र
झूम उठतॆ रंग फागुन फाग हॊली सॊचतॆ,
गाँव भर मॆं घूम करकॆ रँग लगाना याद है !!(१२)...... सुन्दर वाह
रूठ जाता गर कभी कॊई अचानक यार तॊ,
आखिरी मॆं दॆ कसम उसकॊ मनाना याद है !!(१३).... उफ़ डॉ साहब क्या प्यारा पल याद दिला दिया
खॆत सॆ हम काट लातॆ धास पाती रॊज थॆ,
गाय बछड़ॊं और भैसॊं कॊ खिलाना याद है !!(१४) .... वाह
दूध दुहतॆ गाय जब थी बिदक जाती कभी, ........ दूध दुहतॆ गाय तो जब जब बिदक जाती कभी,
जाँघ पॆ वॊ जॊर सॆ दॊ लात खाना याद है !!(१५)
चैत,खॆती जॊ पकी तॊ खॆत मॆं हँसिया लियॆ,
संग मॆं मज़दूर कॆ फ़सलॆं कटाना याद है !!(१६)......... सुन्दर
बैल गाड़ी लॆ चलॆ बाज़ार जातॆ और फ़िर,
ठाकुरॊं कॆ साथ मॆं सरपट भगाना याद है !!(१५) .......... सरपट दौड़ वाह
साथ मॆं पॆड़ॊं तलॆ नित खॆलतॆ थॆ शाम कॊ,
आम कच्चॆ अधपकॆ सब तॊड़ लाना याद है !!(१८) ......... वाह वाह अमराई का सुन्दर चित्र
काँप उठती रूह प्यारॆ जॆठ औ बैशाख सॆ,
तॆज गर्मी दॊपहर मॆं तिलमिलाना याद है !!(१९)..... अच्छे से याद है .... अब तो एसी है तब पंखा भी नहीं होता था (बिजली ही नहीं)
मुफ़लिसी कॆ दौर मॆं घॆरॆ रहीं दुस्वारियाँ, ...... दुश्वारियाँ
दर्द कॆ उस गाँव मॆं भी मुस्कुराना याद है !! (२०)............ बहुत ही कमाल का शेर ... याद है भैया सब याद है इन पंक्तियों पर नाहक ही आँख नम हो आई.
जल उठॆ थॆ गाँव तीनॊं क़ातिलॊ की चाल थी,
ख़न्ज़रॊं कॆ दाव सॆ खुद कॊ बचाना याद है !!(२१)....सन्दर्भ नहीं समझ आया
बॆ-धड़क था बस अँधॆरा क़ैद कर कॆ रॊशनी,
आँधियॊं कॆ बीच दीपक का जलाना याद है !!(२२)........ बहुत बेहतरीन अशआर
वक्त बदला सॊच बदली आज कॆ इंसान की,
आदमी का आदमी पर तिलमिलाना याद है !!(२३).......... लो हो गई आज की बात ... सही बात
साल बीतॆ हैं मगर सब दृश्य हैं ताज़ा वही,
अब तलक हमकॊ पुराना वॊ ज़माना याद है !!(२४)........... सही कहा ... भूल भी नहीं सकते
याद अपनॆ गाँव की भूला नहीं यॆ ‘राज़’ भी,
बरगदॊं की छाँव मॆं बचपन बिताना याद है !!(२५)....... बहुत सुन्दर
आपकी इतनी प्यारी प्रस्तुति से बचपन की उन्ही गलियों में फिर घूम आये , इस रचना पर हृदय से आभार .... जी खुश भी हुआ और जी भर भी आया इसे पढ़कर .... सादर
बेहद लाजव़ाब! बहुत शानदार चित्रण! रचना पर ढेरों बधाईयां आदरणीय!
वाह्ह वाह आ० राज बुन्देली जी आपकी हर प्रस्तुति लाजबाब होती है ,पूरा बचपन समाया है आपकी इस ग़ज़ल में कमाल है
बहुत ही अच्छी लगी हार्दिक बधाई आपको|
इस सुंदर ग्रामीण परिदृश्य को आँखों के सामने हूबहू उतरती इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधायी सादर
बचपन की यादे मन से कभी नहीं जाती ....बहुत सुंदर रचना ..बधाई
बेहद खूबसूरत रचना पर ढेरों मुबारकबाद आदरणीय कवि राज बुंदेली जी
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