बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
अब किसी बात की फरमाइश नहीं होती
गालों पे चुम्बन की बारिश नहीं होती
नयी नयी ड्रेस की सिफारिश नहीं होती
नयी डिश के लिए मस्कापालिश नहीं होती
मूवी जाने के लिए साजिश नहीं होती
माँ को पटाने की अब कोशिश नहीं होती
थोड़ी सी फिर से लहरी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
मीटिंग के बहाने ऑफिस जल्दी जाना
रात को देर से आना फिर जल्दी सोना
मन के खालीपन को हंसी में उडाना
बढती हुई उमर को मेकअप में छिपाना
पापा की यादों को तकिये में बहाना
नहीं अच्छा लगता तेरा यूँ बड़ा होना
इक बार फिर छोटी परी हो जा
नकचढ़ी थोड़ी सरफिरी हो जा
बिटिया तू थोड़ी छोटी हो जा
निधि
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
एक जिम्मेदार बिटिया की संवेदना को आपने बखूबी शब्दों में बाँधा है! आदरणीया निधि जी
सुंदर हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ. बधाई आदरणीया निधि जी
आदरणीया निधि जी इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
बहुत सुंदर रचना है आदरणीया निधि जी बहुत बहुत बधाई
आदरणीया राजेश कुमारी जी .. आपकी रचना पर उपस्थिती और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार
मेरी रचना शायद अपने भावों को सही रूप में नहीं प्रस्तुत कर पायी
आदरणीय गिरिराज जी आपका बहुत बहुत आभार .. मेरी कविता शायद भावों को एकदम सही तरीके से पेश नहीं कर पायी .. मैं उस माँ का दर्द जताना चाहती थी जिसकी बेटी पापा की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारियों में सब कुछ भूल गयी ..और मजबूरी कहो या जरुरत ..अविवाहित खोखली ज़िन्दगी में न माँ खुशियाँ भर पायी न उसका दर्द बाँट पायी
आदरणीय डॉ. विजय जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय @मिथिलेश वामनकर जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका
सुन्दर ,,,कविता पर ,,,ढेरो बधाई आपको आ. Nidhi Agrawal जी |
आदरणीया , बच्चों की भोली शरारतों की ख़्वाहिश सच मे कभी उठ जाती है, खास तौर पे तब , जब गंभीरता आ जाती है बच्चों मे ! बहुत सुन्दर । बधाई आदरणीया ।
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