(१). बदरंग संवेदनाएँ
"घोषणा करवा दो कि कल हम पूरा दिन अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे।"
"क्यों नेता जी ? कल तो कोई व्रत उपवास भी नहीं है।"
"अरे कल अम्बेदकर जयंती है न, पता नहीं किस किस बस्ती में जाना पड़ जाए ।"
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(२). सफ़ेद साँप
"आज तो स्पेशल जश्न होना चाहिए।"
"तो भेजें किसी को दारू सिक्का लाने ?"
"दारू सिक्के के साथ साथ मेरे लिए नत्थू की लौंडिया पकड़ कर लायो।"
"अरे नेता जी, आपको पता है न नत्थू किस जात का है ?"
"अबे चुप !! ऐसा बोलेगा तो बाबा साहेब की आत्मा को कष्ट पहुँचेगा।"
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(मौलिक/अप्रकाशित)
Comment
दोनों ही लघुकथा बेहद ही उम्दा,माइक्रोस्कोपिक दृष्टि से लिखी गयी कथा का बेहतरीन उदाहरण!
आप की रचना पर कुछ कहना मतलब वाह ही करना | जबरदस्त लघुकथाएँ और उनका असर बहुत ही तीछ्ण | बहुत कुछ सीखते हैं हम लोग इन रचनाओं से , सादर नमन आदरणीय |
दोनों लघुकथाएं बहुत उम्दा लगी ,सर. यह सिर्फ आज ही नहीं ,सदा से चले आ रहे जातिवाद को आइना दिखा रहीं है. बहुत-बहुत बधाई,आदरणीय योगराज जी
आदरणीय योगराज भाई , दोनो लघु कथा दो विरोधी आचरन को बताने मे पूरी तरह सफल रहीं । दो धारी तलवार की तरह मारक लगीं ।
आपको हार्दिक बधाई ॥
अ० अनुज
लघु कथा आपकी हो तो कुछ कहने की गुन्जाईश ही कहाँ रहती है i दोनों ही कथाये एक से बढ़कर एक हैं . सादर .
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