"अरी भागवान, क्यों हमेशा कामवाली के पीछे हाथ धोकर पडी रहती हो ?"
"आजकल इसका दिमाग बहुत ख़राब हो गया है।"
"आखिर बात क्या हुई?"
"एक हो तो बताऊँ। बिना बताये छुट्टी मार जाती है, काम करते हुए मौत पड़ती है इसे, पर एडवांस हर महीने चाहिए मुई को"
"अरे शान्त रहो, वो सुन रही है।"
"सुनती है तो सुने, गर्मियों के बाद उठा कर बाहर फ़ेंक दूँगी इसको।"
"मगर कामवाली के बगैर घर के इतने सारे काम कौन करेगा ?"
"क्यों ? बेटे की शादी करके नई बहू किस लिए ला रहे हैं ?"
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुंदर लघुकथा हुई है यह भी , सच है आज भी अनेको घरों में बहुओं से ऐसी ही उम्मीद की जाती है | नमन सर |
"मगर कामवाली के बगैर घर के इतने सारे काम कौन करेगा ?"
"क्यों ? बेटे की शादी करके नई बहू किस लिए ला रहे हैं ?"
जब यह लघुकथा पढ़ी थी तब लगा था, ऐसा शायद ही होता होगा। पर हाल की एक घटना ने आपकी इस लघुकथा को जीवंत कर दिया, जब एक घर में सचमुच बेटे की शादी के बाद कामवाली को हटा दिया गया और बहू जिसके हाथ पैरों की मेहदी, आलता के रंग भी धूमिल नहीं हुए थे कि घर-आँगन को साफ़ करने लगी जबकि शादी में सारे रश्म और रिवाज धूम धाम से संपन्न हुए थे, उम्मीद यही की जा सकती है की दहेज़ में भी अच्छी रकम मिली होगी.
एक कटु सत्य पर परम्पराएँ टूटनी चाहिए टूट भी रही है अब सभी बहुओं खासकर कामकाजी महिलाओं से ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती ...सादर!
आदरणीय योगराज भाईजी
भारतीय परिवारों में चली आ रही यह परम्परा टूटनी ही चाहिए।
बहू घर की लक्ष्मी है, बन के रहे ओ रानी।
पर सासू को चाहिए, अदद एक नौकरानी॥
सासू परम्परा को तोड़े, तभी तो “माँ” कहलाएगी।
बेटी जैसी बहू लगे तो, शुभ लक्ष्मी घर आएगी॥
लघु कथा की हार्दिक बधाई।
महिलाओं के विरुद्ध एक ऐसा षडयंत्र या फिर ऐसी सच्चाई जो लगभग प्रत्येक भारतीय परिवार में परम्परा और संस्कार की ओट में स्वीकृत है. इस पहलू का सीधा पक्ष वस्तुतः आत्मीय सच्चाई है जिसके होने से ही कोई परिवार सात्विक वातावरण हुआ करता है, जहाँ पीढ़ियाँ सबल होती हैं. इसी पहलू का उलटा पक्ष घृणित है, जिसके कारण महिलाएँ परिवारों में आजीवन दासानुदास बन कर जीती हैं. और इस घोर कुकृत्य की सम्पादिका अकसर परिवार की वरिष्ठ महिलाएँ ही हुआ करती हैं.
आदरणीय, आपकी दृष्टि की संवेदना तथा ऐसी मुखर अभिव्यक्ति आपके कहे के प्रति नत कर देती है. हम जैसे नये हस्ताक्षरों को ’कहना’ सिखाने के लिए आपके पास अनुभवों और अभिव्यक्तिों का भरा-पूरा कोश है.
सादर शुभकामनाएँ एवं हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय योगराजभाईसाहब.
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी आप की कथा पर कुछ कहना हम नए रचनाकारो के लिए सूर्य को रौशनी दिखाना ही है.....
बेहतरीन लघु कथा.....एक माँ अपने बेटे के लिए बहु लाते समय क्या मानसिकता रखती है इस का बहुत सुन्दर चित्रण किया आपने कथा में ....हार्दिक बधाई स्वीकार करे .../\.... प्रणाम सहित !
आपने एक सच्चाई को आइना दिखा दिया, आदरणीय योगराज जी. बहुत महीन से विषय को आपने, बहुत ही सुन्दरता से बयां कर दिया आपकी लेखनी को नमन ,सर. समाज में अक्सर यही मानसिकता रहती है, कि बहु के आने पर कई संकट कट जायेंगे. किन्तु यह सोच अधिकतर उनकी होती है जो बहु के आने के बाद पूरी तरह से मुक्ति चाहतीं हो. लेकिन जो सास, कभी बहु बनकर घर में आई थी और अपने हाथों से पुरे घर की गृहस्थी को संभाला हो, वो बहु के साथ मिलकर चलतीं है.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online