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ग़ज़ल- बदलने को बदल जाना,मगर तहजीब जिंदा रख।

बदलने को बदल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हवा के साथ ढल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
यहाँ रंगीन होती रोशनी है कौंधने वाली
खुशी के साथ जल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हमारे आम पर यह कूकती कोयल बताती है
नये मौसम मचल जाना, मगर तहजीब जिंदा रख
हमारे नौजवानों की नई पीढी, नये रिश्ते
नशे में खुद को छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
महब्बत के लिये तो लाख पापड बेलने होंगे
महब्बत में उछल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
बदलना भी जमाने का बडा हैरान करता है
बहुत आगे निकल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
भटक कर आदमी इनसानियत को प्यार करता है
कंही खुद को न छल जाना मगर तहजीब जिंदा रख
...........................सूबे सिंह सुजान.......................
मौलिक तथा अप्रकाशित

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Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:50pm

Dr. Vijai Shanker,   जी आपकी टिप्पणी पाकर मुझे खुशी हुई। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:49pm

Samar kabeer,      जी आपने तारीफ की । मैं अभिभूत हूँ। परंतु मुझसे भी अवश्य ही दोष हुआ है । यह दोष पता चलने पर मुझे बहुत हैरत हुई कि मैं कैसे गलती कर गया। गिरिराज जी  ने मुझे याद दिलाया मैं उनका और आपका बहुत बहुत आभारी हूँ।

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:46pm

गिरिराज भंडारी

                    जी आपका बहुत बहुत आभार। आपने ठीक याद दिलाया।

मानता हूँ यह तो दोष है। बहुत जल्दबाजी कर गया । इस दोष पर आप सब प्रबुद्धजनों से क्षमा प्रार्थी हूँ।

Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:43pm
Comment by सूबे सिंह सुजान on April 17, 2015 at 8:43pm

Shyam Narain Verma

  आपका आभार

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 16, 2015 at 4:34pm
अच्छी ग़ज़ल , बधाई , आदरणीय सूबे सिंह सुजान जी , सादर।
Comment by Samar kabeer on April 16, 2015 at 2:55pm
जनाब सूबे सिंह सुजान जी,आदाब,आपकी रचना अच्छा संदेश दे रही है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
मैं जनाब गिरिराज भंडारी जी की बात से सहमत हूँ |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 16, 2015 at 2:06pm

आदरणीय सूबे सिंह भाई जी , गज़ल बहुत सुन्दर हुई है , बहुत कठिन रदीफ का आपने निर्वाह किया है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

मतले मे काफिया में सिनाद दोष आ गया है  --  बदल जाना .... और घुल जाना ....  समान हिस्से  - ल जाना  के पहले का स्वर मेल भी होना आवश्यक है ,  बदल मे  अल और घुल मे उल आ रहा है , देख लीजियेगा ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 16, 2015 at 12:55pm

आ० सुजान जी

अच्छी गजल हुयी है  . सादर .

Comment by Shyam Narain Verma on April 16, 2015 at 10:52am
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।

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