"बेटा जी आज दूरबीन से इतनी देर से आसमान में क्या ढूंढ रहे हो।"
"पापा जिस तेजी से प्रदूषण फैल रहा है, जल्दी ही पृथ्वी पर प्रलय आ सकती है। इसलिए मैं यह देख रही थी कि क्या कोई और ग्रह हमारी पृथ्वी जैसा है जहाँ हम भविष्य में रह सके।"
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आ० नेहा जी
बहुत सामयिक रचना . आपको बधाई .
आ0 नेहा जी, आपने कल्पना को भी मात दे दिया. बधाई स्वीकार करे. सादर,
बहुत बधाई नेहा जी !!!
सुंदर कथा , नेहा जी बधाई आपको
सोशल मीडिया पर आपको काफी समय से पढता आ रहा हूँ। ओबीओ पर आपकी लघुकथा देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। एक बेहद नवीन विषय को लेकर सार्थक और सारगर्भित लघुकथा रची है नेहा अग्रवाल जी, इस कसी हुई प्रस्तुति हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
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