कोकिला क्यों मुझे जगाती है,
तोड़ कर ख्वाब क्यों रुलाती है.
नींद भर के मैं कभी न सोया था,
बेवजह तान क्यों सुनाती है.
चैन की भी नींद भली होती है
मधुर सुर में गीत गुनगुनाती है
बेबस जहाँ में सारे बन्दे हैं
फिर भी तू बाज नहीं आती है
(मौलिक व अप्रकाशित)
- जवाहर लाल सिंह
गजल लिखने की एक और कोशिश, कृपया कमी बताएं
Comment
जी आदरणीय भ्रमर जी कोशिश जारी रहेगी
बहुत सुन्दर भाव। .सुन्दर गजल। लोगों के सुझाव पर गौर फरमाइयेगा
भ्रमर ५
हार्दिक आभार आदरणीय शिज्जू शकूर साहब!
आदरणीय जवाहरलाल जी अच्छा प्रयास है शेष तो चर्चा हो ही चुकी है प्रयासरत रहें शुभकामनायें
आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब, सादर अभिवादन! अब मैं अवश्य सीख जाऊंगा आपलोगों का अतिशय आभार
आदरणीय जवाहर भाई जी , प्रयास पहले से बहुत अच्छा है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । आ. बागी जी की बात सही है -
2122 1212 22 /112 बह्र मे गज़ल के मिसरे सुधारे जा सलते हैं ,
कोकिला क्यों/ मुझे जगा/ ती है,
तोड़ कर ख्वा/ ब क्यों रुला/ ती है. -- ये शे र सही है
नींद भर के मैं कभी न सोया था, -- नींद भर मैं/ कभी नहीं / सोया ( के हटा दीजिये )
बेवजह तान क्यों सुनाती है. - बेवजह ता/ न क्यों सुना/ ती है.
अन्य दो को आप सुधारने का प्रयास कीजियेगा ॥
आदरनीय डॉ गोपाल नारायण साहब, पिछली बार आदरणीय गिरिराज भंडारी ने काफिया और रदीफ़ के बारे में बताया था इस बार मैंने उसे ही ठीक करने का प्रयास किया... बाकी कोशिश जारी रहेगी आपलोग मार्ग दर्शन करते रहें, यानी त्रुटियों की तरफ इशारा करते रहें ...सादर!
जवाहर जी
गजल कई जगह मीटर में नहीं है i आप आख़री शेर देंखे -
बेबस जहाँ में सारे बन्दे हैं
2 1 2 2 1 22 22 2
फिर भी तू बाज नहीं आती है
2 2 2 2 1 1 2 2 2 2
जवाहर जी हिन्दी के मात्रिक छंदों के हिसाब से रचना करे , सादर .
परम आदरणीय बागी साहब, आपने सुझाव के साथ मेरा उत्साह वर्धन किया है, मेरा प्रयास जारी रहेगा ...सादर!
आदरणीय डॉ. विजय शकर साहब, सादर अभिवादन! मेरा हौसला आफजाई का शुक्रिया
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