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मन्दिर का घंटा


बिना लाग लपेट के 
बिना पाखण्ड के 
सुन लेता है 
समझ लेता है
ईश्वर मन की बात
जान लेता है आत्मा के भाव
फिर भी जाने क्यों 
मन्दिर का घंटा जोर जोर से
तीन बार बजाने पर हr
प्रार्थना पूर्ण होने का
पूर्ण सा अहसास होता है
आत्म-मन -चित्त को  
बडा ही भ्रमित है 
मेरा अल्पज्ञान 
ये सोच सोचकर 
भारहीन मौन प्रार्थना को
ईश्वर तक पहुँचाने के लिये 
मन्दिर के घंटे की आबाज 
का  भारी भरकम
भार क्यों लपेटा जाता है ?

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा

Views: 791

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on April 23, 2015 at 9:02pm
आपका शुक्रिया आपने सही समझा और अन्यथा नहीं लिया।
मैं ने भी यही प्रश्न लिया है , मंदिर/ चर्च में घंटा है क्यों , चर्च में घंटा बहुत ऊंचाई पर होता है , चर्च खुलने के पूर्व बजाया जाता है, मंदिर में घंटा पट खुलने पर , आरती पर, भोग लगने पर , पट बंद होने पर बजाया जाता है। कोई स्वयं की संतुष्टि के लिए अपनी पूजा में या बाद में बजा दे तो यह उसकी व्यक्तिगत संतुष्टि है , बहुत से मंदिरों में अनावश्यक घंटा बजाना प्रतिबंधित होता है , बहुत से लोग सिर्फ बच्चे को दिखाने की लिए घंटा बजाते हैं, मूल उद्देश्य वही है , जो मंदिर नहीं आ पाये उन तक एक स्मरण पहुँच जाए। जोर जोर से भजन - कीर्तन करने , जागरण करने , रामायण पाठ करने पीछे उद्देश्य होता है , तस्सली मन को मिलती है. नेपोलियन जिसने पोप को ही उसके साम्राज्य सहित बंदी बना लिया था , कहा करता था , मुझे चर्च की घंटा ध्वनि से शान्ति मिलती है , यह तो बस मन की तस्सली है , कि आदमी सोचता है कि क्या कर दें कि भगवान हमारी सुन ले।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
चलते चलते : मैं सत्तर के दशक में नैनीताल में था , वहां झील के पास स्थित नैना देवी के मंदिर में , प्रांगण में , अनेक घंटे लोहे की राड पर टंगे हैं , उन दिनों उनमें से एक बड़ा वाला घंटा लोग , विशेषत: युवा लोग , जरूर बजाते थे , इसलिए क्यों कि उसके साथ यह मान्यता जुड़ी थी कि कटी पतंग की शूटिंग के दौरान जब राजेश खन्ना वहां आये थे तो उन्होंने वह घंटा बजाया था। अपनी अपनी तसल्ली है।
सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2015 at 8:23pm

बहुत सार्थक प्रश्न छोडती हुई कविता. बुजुर्गों के अनुसार कहा गया है कि कोई भी धर्म हो मंदिर का घंटा या मस्जिद की अजान. यह ध्वनि आस-पास या जिन कानो तक भी पहुचती है यह अहसास कराती है कि 'एक परमेश्वर ' है जो सबका है. इस सुंदर प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय उमेश जी

Comment by umesh katara on April 23, 2015 at 7:34pm
Comment by umesh katara on April 23, 2015 at 7:34pm

आदरणीय Shyam Narain Verma जी आभार

Comment by umesh katara on April 23, 2015 at 7:33pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी आभार

Comment by umesh katara on April 23, 2015 at 7:31pm

श्रीमान Dr. Vijai Shanker जी 
मेरा आशय घंटा क्यों बजता है इससे नहीं बल्कि मन को तसल्ली घंटा बजाने से क्यों मिलती है जबकि प्रार्थना तो मौन रहकर भी की जा सकती है इसमें मैंने मन के भ्रम को दर्शाना चाहा है शायद कछ सीमा तक स्पष्ट कर सका हूँ आपने तहेदिल से रचना को पढ़ा आभार सर

Comment by दिनेश कुमार on April 23, 2015 at 6:37pm
मन्दिर के घण्टे का अपना महत्त्व है। अन्यथा न लें। सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 23, 2015 at 2:57pm

कटारा जी

सार्थक प्रश्न . घंटा क्यों बजाया  जाता है ? मैं भी जानना चाहता हूँ . सादर .

Comment by Shyam Narain Verma on April 23, 2015 at 2:52pm
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई
Comment by Dr. Vijai Shanker on April 23, 2015 at 11:30am
मंदिर में घंटा सोये हुए भक्तों को जगाने के लिए होता है ,
चर्च में भी घंटा होता है , उसका भी यही उद्देश्य होता है।
सत्य नारायण की कथा में जो घंटा बजता है उसका भी यही उद्देश्य होता है ,
सड़क पर जाता आदमी भी घंटा ध्वनि सुन ले , ईश्वर का स्मरण कर ले।
शुभ सुबह हो , सादर।

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