बिना लाग लपेट के
बिना पाखण्ड के
सुन लेता है
समझ लेता है
ईश्वर मन की बात
जान लेता है आत्मा के भाव
फिर भी जाने क्यों
मन्दिर का घंटा जोर जोर से
तीन बार बजाने पर हr
प्रार्थना पूर्ण होने का
पूर्ण सा अहसास होता है
आत्म-मन -चित्त को
बडा ही भ्रमित है
मेरा अल्पज्ञान
ये सोच सोचकर
भारहीन मौन प्रार्थना को
ईश्वर तक पहुँचाने के लिये
मन्दिर के घंटे की आबाज
का भारी भरकम
भार क्यों लपेटा जाता है ?
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Comment
बहुत सार्थक प्रश्न छोडती हुई कविता. बुजुर्गों के अनुसार कहा गया है कि कोई भी धर्म हो मंदिर का घंटा या मस्जिद की अजान. यह ध्वनि आस-पास या जिन कानो तक भी पहुचती है यह अहसास कराती है कि 'एक परमेश्वर ' है जो सबका है. इस सुंदर प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय उमेश जी
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आभार
आदरणीय Shyam Narain Verma जी आभार
आदरणीय दिनेश कुमार जी आभार
श्रीमान Dr. Vijai Shanker जी
मेरा आशय घंटा क्यों बजता है इससे नहीं बल्कि मन को तसल्ली घंटा बजाने से क्यों मिलती है जबकि प्रार्थना तो मौन रहकर भी की जा सकती है इसमें मैंने मन के भ्रम को दर्शाना चाहा है शायद कछ सीमा तक स्पष्ट कर सका हूँ आपने तहेदिल से रचना को पढ़ा आभार सर
कटारा जी
सार्थक प्रश्न . घंटा क्यों बजाया जाता है ? मैं भी जानना चाहता हूँ . सादर .
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई |
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