For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

....जागते रहो

शहर के उस कोने में बजबजाता
एक बड़ा सा बाजार
जहॉ बिखरे पड़े हैं सामान
असहजता के शोरगुल में
तोल-मोल करते लोग
कुछ सुनाई नहीं देता
बस!  दिखाई देता है,  एक गन्दा तालाब
उसमें कोई पत्थर नहीं फेंकता
उसमे तैरती हैं...मछलियां, बत्तखें और
बेखौफ पेंढुकी भी
वे जानती है, और सब समझतीं भी हैं...
इस संसार में सब कुछ बिकाऊ हैं-
कुछ पैसे लेकर और कुछ पैसे देकर
यहां शरीर से लेकर आस्था तक, .....सब!
तालाब की मिट्टी में सने ...देव मूर्ति ही!
पास ही -िस्थत पक्की लाल कोठी
बाजार का मुख्य आकर्षण
अपनी कलात्मकता के लिए दूर-दूर तक मशहूर,
अनगिनत छोटी-बड़ी खिड़कियां
नित्य प्रात: से ही सज संवर जातीं
चमकीलें पर्दे एडि़यां उठा-उठा कर नीचे झांकते
प्रतिद्वंदियो की आपाधापी और पर्दो की चकाचौंध में
पथिकों की नजरें अनायास ही टकराती
सजीली खिड़कियों से....... पर्दे गिर जाते,
किन्तु, खेल खत्म नहीं होता
प्रारम्भ होते रश्म, मगही पान से
तालाब के हलचल में प्रतिबिम्ब साफ नहीं झलकता
मन-आत्मा, सम्पूर्ण व्यक्तित्व,
सब के सब झिलमिला कर अपना अ-िस्थत्व खोते
सतह पर पानी के बुलबलें उठते और स्वत: बुझ जाते
कुशल बत्तखें वृत्ति वश
बार-बार गोते लगाकर ढूढ़तीं
अपनापन, उल्लास, आनन्द
कुछ भी हाथ नहीं आता
मुट्टी भर सिक्कों की खनक में गूंजते अपशब्द
गन्दे तालाब को झकझोर देते
बढ़ जाते मन के कोढ़ .....बुलबुलों की तरह
जोश का क्षणिक एहसास, पल भर में ही
आत्मा को धिक्कारती.....अन्त: तक
खाली बोतल सी लुढ़कती जिन्दगी,
भीगी रेत के दलदल मेंं धंसी....गरदन तक
मछलियां, बत्तखें व पेंढुकी आदि सब की सब शान्त!
अब शोर भी नहीं होता
मध्य रात्रि गुजर चुकी है
रह-रह कर रूदन करती
चौकीदार की सीटी......चींखती
.....जागते रहो, कि.........हम जिन्दा हैं.....!

के0पी0 सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2015 at 9:41pm

आ0 गोपाल सर जी,  आपके अनुमोदन के लिये आपका आभार. सादर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 30, 2015 at 1:21pm

आ० केवल जी

बहुत ही सुन्दर रचना की है आपने . आपको बधाई . सादर .

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 29, 2015 at 9:17pm

आ0  कबीर भाईजी,  आपका आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 29, 2015 at 9:16pm

आ0  अमन भाईजी,  आपका आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 29, 2015 at 9:14pm

आ0  गनेश सरजी,   सादर प्रणाम!  आपका कथन पूर्ण सत्य है,  प्रारम्भ  में ऐसा ही किया था. किंतु गति व लय को ध्यान में रख  कर इस स्वरूप मे  रखना पडा.  फिर भी आपके सुझाव पर पुन: विचार करूंगा. आपके स्नेह के लिये आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 29, 2015 at 9:04pm

आ0 वामनकर भाईजी, आपका आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 29, 2015 at 9:02pm

आ0 विजय भाईजी, आपका आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 29, 2015 at 9:02pm

आ0 श्याम नारायण भाईजी, आपका आभार. सादर

Comment by Samar kabeer on April 29, 2015 at 6:44pm
जनाब केवल प्रसाद जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |
Comment by aman kumar on April 29, 2015 at 8:51am

बहुत सुंदर !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service