For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- कहीं थे बाज़ू कहीं बदन था

बह्र :- फ़ऊल फ़ैलुन फ़ऊल फ़ैलुन

कहीं थे बाज़ू कहीं बदन था
हिजाब आलूद पैरहन था

निगाह ख़ंजर बनी हुई थी
नज़र हटाई तो गुलबदन था

कहाँ तलक उससे बच के चलते
वो डाली डाली चमन चमन था

समझ के गुलशन की बात की थी
मुराद मेरी तिरा बदन था

सालीक़ा लाओगे वो कहाँ से
सुना है फ़रहाद कोहकन था

हर एक मंज़िल पे देखा जाकर
वही सितारा वही गगन था

भला सा लगता था उन दिनों में
तिरी अदा में जो बांकपन था

अभी "समर" की बिसात क्या है
कभी तुम्हारा वो जान-ए-मन था


"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 11:29am

जनाब समर साहब, आपने मेरे संशय को सहृदयता से अनुमोदित कर मेरा मान बढ़ाया है. मैं हृदय की अतल गहराइयों से कृतज्ञ हूँ.
सादर

Comment by Samar kabeer on May 2, 2015 at 10:53am

जनाब सौरभ पाँडे जी,आदाब,सारे विद्वान अलग और आप का मुक़ाम अलग,ग़ज़ल जल्दी में पोस्ट कर दी,इस ओर ध्यान ही नहीं गया,ग़ज़ल में आपकी शिर्कत देर से हुई,इस ओर ध्यान दिलाने के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ |

Comment by Samar kabeer on May 2, 2015 at 10:46am
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on May 2, 2015 at 10:44am
मोहतरमा महिमा श्री जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Samar kabeer on May 2, 2015 at 10:41am
जनाब मुकेश श्रीवास्तव जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2015 at 1:00am

मो. समर साहब, कहन पर तो कुछ कहना ही नहीं है. बस हर शेर अपने साथ बहाये जा रहा है.

हर एक मंज़िल पे देखा जाकर
वही सितारा वही गगन था..................  अब इस महीनी पर खुल के दाद न दूँ तो क्या करूँ !
या, फिर -
समझ के गुलशन की बात की थी
मुराद मेरी तिरा बदन था...................... वल्लाह !

कहन के लिहाज से बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है.


लेकिन चूँकि बहर के चार अर्कान दो-दो की बराबरी पर हैं तो फिर शिकस्तेनारवा’ का ऐब ज़रूर ध्यान में रखना था. जाने क्यों अच्छे-अच्छे विद्वान शाइर आ चुके हैं इस ग़ज़ल पर, मगर मैं किसी की निग़ाह इस ओर पड़ती नहीं देख रहा हूँ.
ग़ज़ल के कई मिसरे, यहाँ तक मतला भी, इस ऐब के शिकार हैं. कृपया देख लीजियेगा.
या मैं ही गलत हूँ ?
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 1, 2015 at 6:28pm
आदरणीय समर कबीर जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाये
Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 6:15pm

कहाँ तलक उससे बच के चलते
वो डाली डाली चमन चमन था...बढ़़िया.बधाई

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 1, 2015 at 5:09pm

बहुत बढ़िया आदरणीय समर कबीर जी मेरी हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें सादर

Comment by Samar kabeer on May 1, 2015 at 10:51am
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar shared their blog post on Facebook
4 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"स्वागतम"
15 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र जी, हृदय से आभारी हूं आपकी भावना के प्रति। बस एक छोटा सा प्रयास भर है शेर के कुछ…"
16 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"इस कठिन ज़मीन पर अच्छे अशआर निकाले सर आपने। मैं तो केवल चार शेर ही कह पाया हूँ अब तक। पर मश्क़ अच्छी…"
17 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय गजेंद्र ji कृपया देखिएगा सादर  मिटेगा जुदाई का डर धीरे धीरे मुहब्बत का होगा असर धीरे…"
18 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"चेतन प्रकाश जी, हृदय से आभारी हूं।  साप्ताहिक हिंदुस्तान में कोई और तिलक राज कपूर रहे होंगे।…"
18 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"धन्यवाद आदरणीय धामी जी। इस शेर में एक अन्य संदेश भी छुपा हुआ पाएंगे सांसारिकता से बाहर निकलने…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय,  विद्यार्जन करते समय, "साप्ताहिक हिन्दुस्तान" नामक पत्रिका मैं आपकी कई ग़ज़ल…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"वज़न घट रहा है, मज़ा आ रहा है कतर ले मगर पर कतर धीरे धीरे। आ. भाई तिलकराज जी, बेहतरीन गजल हुई है।…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीया, पूनम मेतिया, अशेष आभार  आपका ! // खँडहर देख लें// आपका अभिप्राय समझ नहीं पाया, मैं !"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"आदरणीय रिचा यादव जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service