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दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे
कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा में जफा पे
तुम न होते ज़िन्दगी में गर मेरी तो
मैं कभी कुछ कह नहीं पाता बफा पे
रख के सर जानो पे मरने की तमन्ना
और मत जिंदा मुझे रख तू दवा पे
लोग जिससे खौफ अब भी खा रहे
मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे
गोपियों सा प्रेम दिल में जब भी होगा
कृष्ण भागे आयेंगे तेरी सदा पे
पापियों के पाप से धरती हिली जब
थी कहानी दर्द की वादे सवा पे
लूटती हैं जब ह्वायें ही चमन को
क्यूँ नहीं इल्जाम तय होता हवा पे
रूप ये जलवा तुम्हारा जब न होगा
भीड़ गुम होगी जो मरती है हया पे
रुख पे लाली झुकती पलकें देख कर यूं
लुट गए आशू हसीनो की अदा पे
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । आपने सुधार सही किया है ,7 वाँ - बहार और खिंज़ाँ वाले शे र के विषय मे और सोच लीजियेगा ।
बहुत ख़ूब... वीनस जी ने यथोचित टिप्पणी की है जिसपर आपके प्रयास जारी हैं. आपको बधाई
सादर
बहुत सुंदर गज़ल.
दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे
कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा मैं जफा पे ....आदरणीय वीनस जी मार्गदर्शन के अनुरूप मैं अपनी समझ से परिवर्तन कर रहा हूँ ..प्रथम शेर को मूल रूप से हटाकर उसकी जगह ये शेर लिखा है ..आपकी प्रतिक्रिया से ही मेरे प्रयास की सफलता निर्धारित होगी सादर ..pahl
आदरणीय गोपाल सर ..ग़ज़ल को आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मिली इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ ..आपका मार्गदर्शन और स्नेह मुझे हमेशा मिलता रहा है ..आदरणीय वीनस जी की पैनी नजर से मेरी गलतियां बच नहीं पाती हैं मैंने उनके मशविरे पर अमल करते हुए संशोधन का प्रयास करूंगा सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय विजय सर रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर
आदरणीय वीनस जी ..काफिये में जो गलती हुई है मैं उस बात को समझ गया ..उसे परिवर्तित करने का प्रयास कर रहा हूँ ..वाकई ये बड़ी गलती हुई है ..और ये नहीं होना चाहिए था ...आपका मार्गदर्शन मिला है मैं इसमें संशोधन करूंगा ..आपका मार्गदर्शन ऐसे ही सतत मिलता रहे ऐसी कामना के साथ सादर धन्यवाद के साथ
आदरणीय केवल जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
आशुतोष जी
मुझी वीनस भाई की बात समझ में आयी . आप भी गौर करें .. गजल की कहन अच्छी है . सादर .
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