-नहीं।
-क्यों?
-डरती हूँ,कुछ इधर-उधर न हो जाए।
-अब डर कैसा?बहुत सारी दवाएँ आ गयी हैं,वैसे भी हम शादी करनेवाले हैं न।
-कब तक?
-अगले छः माह में।
-लगता है जल्दी में हो।
-क्यों?
-क्योंकि बाकि सब तो साल-सालभर कहते रहे अबतक।
लड़के की पकड़ ढीली पड़ गयी।दोनों एक-दूसरे को देखने लगे। फिर लड़की ने टोका
-क्यों,क्या हुआ?तेरे साथ ऐसा पहली बार हुआ है क्या?
'मौलिक व अप्रकाशित' @मनन
Comment
आदरणीय जितेंद्र जी, ओमप्रकाश जी,मिथिलेश जी व आ॰राजेश कुमारी जी, स्नेहिल और प्रेरणास्पद टिप्पणियों के लिए आप सबका बहुत-बहुत आभार।
बहुत अच्छी लघुकथा,आदरणीय मनन जी. इसे स्वतंत्रता कहलो या कुछ पल के रिश्ते, आज के दौर में इसे स्वीकार किया जाना ही पड़ेगा
आज की पीढ़ी की स्वछन्दता का कहूँ या चरित्र का आईना कहूँ इस लघु कथा को ...बधाई इस कटाक्ष पर .
अंतिम पंक्तियों ने लघुकथा में जान डाल दी .
आज के युग की सच्चाई .
अब क्या कहें ? जो है सो है..
वैसे यह भी एक लघुकथा है.. अपने मक़सद में क़ामयाब..
शुभकामनाएँ, भाईेजी.
हा हा हा
बहुत बढ़िया कटाक्ष आज के प्रेमी युगल की वास्तविकता पर
बधाई इस प्रस्तुति पर
आदरणीय महिमाजी, आभार आपका कथा के मर्म पर टिप्पणी करने के लिए।
आज के तथाकथित युगल प्रेमियों के सच को सही बुना आपने ..बधाई आपको
आदरणीय वीनस केसरी जी, हाहाहा धन्यवाद
आदरणीय विजय शंकर जी, प्रयास को प्रोत्साहित करने हेतु धन्यवाद।
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