For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब फैसला आखिर मे सारी बात का मिला
दिन की थकन के बाद सफ़र रात का मिला

घर से यूँ लौट आता हु मैं दो दिनों के बाद
कैदी को जैसे वक़्त मुलाकात का मिला

मालिक तू है कहाँ मेरी आँखे तरस गयी
लेकिन पता न मुझको मेरी जात का मिला

आयी सुबह ज़रूर मगर बादलो के साथ
अंजाम ये बरसो से लंबी रात का मिला

इस बात का नहीं मुझे कुछ भी पता चला
क्यों जीत में ये रँग हमे मात का मिला

फिर आज मैंने खुद को सताया है देर तक
एक शख़्श मुझको मेरी औकात का मिला

ख़ारिज़ ये शायरी है खारिज है मेरी ज़ीस्त
ये इल्म मुझको सारे तज़र्बात का मिला
'अहसास'




मौलिक और अप्रकाशित

Views: 459

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 4:13pm
आपकी निगाह पड गयी
मुझे हौसला हुआ
आपकी इनायत है जनाब कबीर सर
Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 3:23pm
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 1:20pm
बहुत आभार सर
ये ग़ज़ल मेरी और मेरे बहुत से साथियों के दर्द की अभिव्यक्ति है
उत्तरप्रदेश में 72825 प्राथमिक शिक्षकों के चयन के अंतर्गत मेरा चयन गृह जनपद सहारनपुर से लगभग 500 किमी दूर सीतापुर में हुआ है ये चयन गृह जनपद में भी हो सकता था परन्तु सिस्टम की कमी की वजह से बहुत सारे मेरे साथी अपने घर से दूर रह रहे है सर्विस के प्रारंभिक दिनों में जबकि वेतन या मानदेय मिलने के अभी कोई आसार नहीं है घर जाना फिर एक दो दिन बाद वापस आना पुरे दिन ड्यूटी ले बाद रात का सफ़र करना और चार साल बाद लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद इअ नौकरी का आधे अधूरे अर्थो में मिलना
ये सब इस ग़ज़ल।में कहने का प्रयास किया गया है
इस स्विकारोक्ति के साथ की ग़ज़ल के छंद से मैं अभी अपरिचित हूँ
आप सभी से निवेदन है कि इसे विशेष उक्त सन्दर्भ में पुनः पढने की कृपा करे
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2015 at 6:01pm

आदरणीय मनोज जी इस शानदार प्रस्तुतु पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by मनोज अहसास on May 3, 2015 at 8:05am
बहुत आभार सीमा जी
टाइप में थोड़ी गलती से शेर में 'तक '
शब्द छूट गया है पूरा मिसरा यु है

फिर आज मैंने खुद को सताया है देर तक




आप सभी के आशीर्वाद का बहुत आभार
Comment by seema agrawal on May 3, 2015 at 12:42am

शानदार  प्रस्तुति  हर शेर लाजवाब ..................

फिर आज मैंने खुद को सताया है देर
एक शख़्श मुझको जब मेरी औकात का मिला.................वाह  क्या ज़ोरदार बात  

Comment by मनोज अहसास on May 2, 2015 at 10:02pm
आदरणीय मिथिलेश जी
सादर नमन
आभार

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 2, 2015 at 9:54pm

बेहतरीन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनोज जी 

Comment by मनोज अहसास on May 2, 2015 at 9:04pm
जी बहुत मेहरबानी
मै ज़रूर ध्यान दूँगा
आभार
MAHIMA SHREE JI
Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 8:38pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल ..बधाई आपको..हर शेर के बाद थोड़ा स्पेश दे.. तो सही दिखेगा .आप अन्य बलॉगर मित्रों के पोस्ट को देखे 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
4 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service