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अश्लीलता आज के दौर में सफलता का पर्याय बन गयी है,हर तरफ इसी का बोलबाला दिखता है,गायक,कवि,टीवी प्रोग्राम,फ़िल्में.गीतकार,गजलकार,सभी सिर्फ पैसे और सोहरत के लिए फूहड़ता के किसी भी स्तर तक जाने को तैयार है....आपने रचना में बहुत ही ज्वलंत मुद्दा उठाया है, आपको मेरी ओर से हार्दिक बधाई!
आ० मिथिलेश सर का इशारा जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ के..इस ओर है के..रचना के माध्यम से मूलतः जो आप कहना चाह रहे है'
//एक खुदगर्ज ने कवि बनने की चाह में
एक मासूम लड़की को सामान कह दिया//
वह बाकि के संवाद से ठीक तरह से जुड़ नही पा रहा है!!
जैसे काट-छांट,समान के साथ उपहार,खरीदार की जरुरत,और नोचना जलाना कुचलना आदि किस तरह से लेखक के लड़की के सामान कहने से जुड़ रहा है?? आपसी तुक बैठ नही रहा!
आशा है मै अपनी बात कह पाया हूँ!
सार्थ प्रस्तुति आदरणीय मनोज जी. आपका नीचे प्रतिउत्तर पढ़कर आपकी रचना का पूर्ण आंकलन कर पाया हूँ. बहुत-बहुत बधाई प्रस्तुति पर,
गहरी चोट समाज की सोच पर लगाते हुए प्रभावी अभिव्यक्ती ....सादर
वाह बहुत सुंदर....
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