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बहुत मेहरबानी सर
आदरणीय सौरभ पांडेय जी
आपने मुझे एक और राह दिखाई है ।
इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाइयाँ मनोज भाई.. विश्वास है, आपको भान हो चुका होगा कौन-कौन से मिसरे बहके हैं. आप अपनी गज़लों के मिसरों का वज़न दे दिया करें. इससे आप ही को लाभ होगा. आपकी इस गज़ल का वज़न २१२२ २१२२ २१२२ २१२ है.
शुभेच्छाएँ
मनोज जी इस सुंदर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई ..बिद्वत जन सुझाव दे ही चुके हैं सादर
आदरणीय , गज़ल अच्छी हुई है , आपको हार्दिक बधाई ।
एक दो मिसरे बे बहर लग रहे हैं ,
देखकर बदहाली उसकी उठता नहीं अब दिल में दर्द
अहसास ये आँखे तो बस देखती ही रह गयी -- दोनो की तक्तीअ कर के देख लीजियेगा ॥
अच्छी ग़ज़ल हुई है
देखते देखते के बाद फिर देखो थोडा अटपटा लग रहा है
देखकर बदहाली उसकी उठता नहीं अब दिल में दर्द.. में बहर टूट गयी है
कुल मिलकर बहुत अच्छा प्रयास है .
बधाई आपको
वाह वाह मनोज जी बहुत खूब .... बेहतरीन ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाए
इस शेर पर दिल से दाद हाज़िर है -
मैंने उसके हिस्से की तन्हाइयां जब मांग ली
वो मेरी उम्मीद से भी ज्यादा तनहा हो गया
आखिरी शेर में मिसरा-ए-उला पर एक बार और गौर कीजियेगा.
सादर
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