२१२२ २१२२ २१२२ २१२२
तुमको पत्थर में नहीं मूरत दिखाई दे रही है
नदियों की कल कल न बांधों में सुनायी दे रही है
कोई भी इल्जाम मैंने तो लगाया था नहीं फिर
वो हंसी गुल जाने क्यूँ इतनी सफाई दे रही है
चीख बस बच्चों कि ही तुमको सुनायी देती है क्यूँ
ये न देखा लाडले को माँ दवाई दे रही है
एक रोटी के लिए तरसा दिया उस माँ को तुमने
जो गृहस्ती ज़िंदगी भर की बनायी दे रही है
काम दुनिया में अकेली माँ ही ये कर सकती है बस
रोटी भूखे बच्चे को खुद को बचाई दे रही है
आबरू उस माँ की लूटें आज उसके लाडले ही
जिसकी वो ममता जमाने से दुहाई दे रही है
उम्र भर का साथ हमने दोस्तों जिससे था माँगा
वो हंसी गुल ज़िंदगी भर की जुदाई दे रही है
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय सर ...हौसला अफजाई के लिए हादिक धन्यवाद सादर
आदरणीय नूर जी ..आपका मशविरा बहुत बढ़िया है अंत में है लगाने से बात पूरी हो रही है इसे अवश्य संशोधित करूंगा .आपकी प्रतिक्रिया और मशविरे के लिए हृदय से आभार ज्ञापित करते हुए सादर
बहुत अच्छे ..
मतले के दोनों मिस्रें यदि है पे समाप्त हों तो बात पूर्ण होगी..अधूरापन हटेगा ..
चीख बस तुमको सुनायी दे रही बच्चे कि है
ये न देखा लाडले को माँ दवाई दे रही.......इशारा समझ रहा हूँ ..मेरे घर की भी यही कहानी थी..खैर अब बच्चे तोड़े बड़े हो गए हैं...
सादर
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