For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नसरी नज़्म :- तन्क़ीद निगार

तनक़ीद निगार
अच्छा भी,बुरा भी
अच्छा इसलिये कि वो
हमें हमारी ख़ामियाँ बताता है
हमें सही सम्त (दिशा) देता है
लेकिन जब यही तनक़ीद निगार
प्रोफ़ेश्नल,कारोबारी,हो जाता है
तब ये तख़लीक़ के
महासिन नहीं देखता
उस तख़लीक़ में
धड़कता दिल नहीं देखता
उसकी नज़र सिर्फ़ और सिर्फ़
ऐब तलाश करती है
उस तख़लीक़ में
जो शाईर की,कवि की,
लेखक की,मुसन्निफ़ की
अपनी जागीर है
वो इसमें ऐब निकालकर,कीड़े निकालकर
ख़त्म कर देता है
उस महल को जो ख़यालों में बना था
बिखेर देता है,
तन्क़ीद निगार
अच्छा भी बुरा भी !

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 727

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 8:44pm

बहुत ही सुन्दर और सार्थक नज्म हुयी है आ० समर सर! हार्दिक बधाई!

Comment by Neeraj Neer on May 5, 2015 at 7:39pm

वाह बहुत सुंदर ... 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2015 at 5:44pm

बिलकुल ठीक फ़रमाया आपने ....
नज़्म अपनी बात पहुँचा रही है ..बधाई 
सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 10:58am
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार, अभी अभी आपकी नज्म तनक़ीद निगार पढ़ी। विषय गम्भीर है, आलोचना स्वयं में एक बड़ा महत्वपूर्ण विषय है, आलोचक होकर काम करना भी सरल नहीं है , आलोचक किसी रचना में जो है उसे छोड़ वह ढूंढता है जो नहीं है , नतीज़तन , जो है , उसका लुफ्त तो उठा नहीं पाता और मीन मेख निकालने में ही रह जाता है। गलतियां ढूंढता रहता है, डरता रहता है कि कहीं कोई गलती गलती से रह न जाए , कोई और ढूंढ लें और उस पर सही ढंग से काम करने का इल्जाम लग जाए. हाय, गलती ढूंढने में गलती। बहुत से अधिकारियों के ट्रेनिंग पाठ्य क्रम में फाल्ट फाइंडिंग ( fault finding ) एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है, कहना न होगा , उसमें प्रशिक्षणार्थी गलती कर जाते हैं , यह भी कहा जाता है कि जो अफसर किसी भी काम में गलती न निकाल पाये वो कैसा अफसर।
फिर आपने पेशेवर आलोचकों का जिक्र किया है , मजबूर हैं, वैसे उन्हें भी गलती निकालने की आलोचना सुननी पड़ती है. मजबूरी है.
रचना-कर्म के पीछे कितने और कैसे कैसे दर्द छिपे हैं , आलोचल वह नहीं देख पाता हैं, अपने काम इतना मशगूल रहता है. आप सफाई भी दें , पर कहाँ सुनता है।
वैसे मेरा अपना सोंचना कुछ यों है कि जब कुछ लिख दिया तो लिख दिया और वह छप गया तो फिर वह मेरा कम पाठकों का अधिक हो गया। वे आपस में ही तय करलें कि किस लायक है , सिर्फ आलोचक पर तो नहीं छोड़ी जा सकती कोई रचना , वह भी जनतंत्र में।
आपको इस नज़्म के लिए बधाई, बहुत काबिले तारीफ़ है, सादर।
Comment by मनोज अहसास on May 5, 2015 at 10:44am
आदाब सर पूरी nazam कई बार पढ़ी कुछ समझा कुछ नहीं
उर्दू नहीं आती ना
नसरी nazam में भी कोई बहर होती है क्या ये थोडा बता दे
मेरे ख्याल से तो ये मुक्त छंद वाली अतुकांत कविता जैसे ही होती होगी
भाव पूर्ण रचना के लिए बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
15 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service