For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मध्य अपने जम गयी क्यों बर्फ़.. गलनी चाहिये
कुछ सुनूँ मैं, कुछ सुनो तुम, बात चलनी चाहिये

खींचता है ये ज़माना यदि लकीरें हर तरफ  
फूल वाली क्यारियों में वो बदलनी चाहिये

ध्यान की अवधारणा है, ’वृत्तियों में संतुलन’
उस प्रखरतम मौन पल की सोच फलनी चाहिये !

हो सके तो बन्द सारी खिड़कियाँ हम खोल दें
अब शहर में ज़िन्दग़ी की साँस चलनी चाहिये

देश के उत्थान की चिंता करे सरकार ही ?
राष्ट्र-हित की आग तो हर दिल में’ जलनी चाहिये    

भेद मत्सर औ’ घृणा के रोक ले अवशिष्ट जो-
हाथ में हर नागरिक के एक छलनी चाहिये
************
-सौरभ
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1186

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on May 7, 2015 at 1:39am

बहुत खूब

शानदार ग़ज़ल हुई है ////


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 7, 2015 at 12:35am
आदरणीय सौरभ सर,
बेहतरीन तरही ग़ज़ल हुई है।
हिंदी के तत्सम शब्दों का जिस खूबसूरती से प्रयोग हुआ है हरेक शेर मुग्ध कर रहा है।
इस सुन्दर प्रेरणास्पद प्रस्तुति हेतु आभार। नमन।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 6, 2015 at 11:35pm

बहुत सुंदर गजल, सर. हर एक शे'र सादगीपूर्ण लगा. ह्रदय से बधाई स्वीकारें

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 6, 2015 at 10:52pm
यूं तो पूरी ग़ज़ल सुन्दर है, आकर्षित कर रही है, पर ये तो बड़ी गहरी बात हो गयी ,
ध्यान की अवधारणा है, ’वृत्तियों में संतुलन’
उस प्रखरतम मौन पल की सोच फलनी चाहिये !
वाह , " सोच फलनी चाहिए " बहुत बहुत बधाई , आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , शुभकामनाएं, सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2015 at 10:10pm

आदरणीय गिरिराजभाईजी, यह एक तरही ग़ज़ल है, वो भी तुरत में प्रस्तुत करना था. वस्तुतः यह ग़ज़ल दुष्यंत की अत्यंत प्रसिद्ध ग़ज़ल पर ही आधारित है.

आपको मेरे अश’आर पसंद आये यही मेरे लिए पुरस्कार है. सादर धन्यवाद ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2015 at 10:06pm

भाई दिनेशजी, आपने इस प्रस्तुति को अनुमोदित कर मेरा मान किया है. हार्दिक धन्यवाद भाईजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 6, 2015 at 10:04pm

आदरणीय नीलेशजी, प्रस्तुति पर आपकी चटपट उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद. आपकी प्रशंसा मेरे लिए वस्तुतः अर्थवान है.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2015 at 8:13pm

क्या बात है , आदरणीय सौरभ भाई , एक  एक शे र एक एक सूत्र हैं जीवन के । लाजवाब गज़ल हुई है । पढ़ के दुश्यंत जी और आ. एहतराम भाई दोनो की याद ताज़ा हो गई । किसी एक - दो को  चुन पाना बेहद मुश्किल काम है , पूरी गज़ल के लिये आपको हृदय से बधाइयाँ ॥  

Comment by दिनेश कुमार on May 6, 2015 at 8:01pm
वाह वाह आदरणीय, बहुत खूब। कमाल की सोच अशआर में परिवर्तित हुई है। ढेरों दाद व मुबारकबाद सर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2015 at 7:24pm

बहुत खूब आदरणीय ..बड़े गहरे शेर हुए हैं..हर शेर पर बधाई और दाद हाज़िर है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई चेतन जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए हार्दिक धन्यवाद।  मतले के उला के बारे में…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति के लिए आभार।"
4 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  सरना साहब,  दोहा छंद में अच्छा विरह वर्णन किया, आपने, किन्तु  कुछ …"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आ.आ आ. भाई लक्ष्मण धामी मुसाफिर.आपकी ग़ज़ल के मतला का ऊला, बेबह्र है, देखिएगा !"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
Monday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service