" अंकल " , बस यही आवाज़ निकल पायी थी उसके मुँह से |
पहले भी यही आवाज़ निकलती थी , पर वो आवाज़ ख़ुशी की होती थी |
आज वो अपनी सहेली के घर बिना फोन किये आई , और अब अस्पताल में बेसुध पड़ी थी |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी | आपकी टिप्पणी नया मनोबल भर देती है लेखक में |
बहुत बहुत आभार आदरणीय जीतेन्द्र पस्तरीया जी | इधर कुछ दिनों से बाहर था इसलिए लिख नहीं पाया | आपकी प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ा देती है |
आह--------------वाह-------------------
विनय जी
अवाक कर देती रचना और क्या शिल्प है ! सादर .
मन को झंझोड़ कर रख देती , लघुकथा .आदरणीय विनय जी. सच! ही है चेहरे पर कुछ लिखा नही होता. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें ,आदरणीय विनय जी. बहुत दिनों के बाद आपकी लघुकथा पढने को मिली..
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