आज फिर से बादल , मौसम को ई का हो गया है , रामदीन सोच में डूब गया | आधे से ज्यादी फसल तो पहले ही चौपट हो गयी है , ऊपर से अगर घाम न हुआ तो पकेगी कैसे बची खुची फसल | कुछ समझ नहीं आ रहा था उसको | थोड़ी देर बाद वो उठा और कुम्हार टोला की ओर निकल गया | वहां रघू भी अपने सर पर हाँथ रख कर बैठा था , उसे देखते ही बोला " अरे ई मौसम को का हो गवा है , एकदम समझ नहीं आवत है एकर मिज़ाज़ | बर्तन तो तैयार ही नहीं हो पावत हैं , कइसे दो जून की रोटी का इंतज़ाम होई "|
कोई जवाब नहीं था उसके पास , चुपचाप उठा और वापस खेत की ओर निकल पड़ा | पगडण्डी गीली थी और उससे ज्यादा गीला था उसका मन | कइसे होगा इस बार सबके लिए भोजन का इंतज़ाम , अगली फसल के लिए भी तो खाद , बीज लेना है | इन्ही विचारों से जूझता हुआ वो अपने खेत पहुंचा तो सन्न रह गया | एक बछिया उसके खेत में घुस के बची खुची फसल चबा रही थी | मन एकदम से क्रोध से भर गया उसका और पास पड़ी ईंट उठाकर उसने पूरी ताक़त से बछिया को मारा | ईंट सीधी उसके सर पर लगी और वो दो चार कदम दौड़ कर उसके खेत में ही गिर पड़ी | उसके गिरते ही रामदीन की चेतना जागी , वो भाग कर बछिया के पास पहुंचा , पर वो तो मुंह से खून उगलती मृतप्राय हो गयी थी |
अब क्या हो , गौ हत्या का पाप लग जायेगा उसके ऊपर | सर पकड़ कर वो बछिया के पास बैठ गया । अचानक बछिया ने आखिरी हिचकी ली और रामदीन उसको देखते हुए फफक कर रो पड़ा |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारीजी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी । आप ठीक कह रहे हैं की ईंट के एक वार से बछिया का मर जाना थोड़ा अस्वाभाविक लगता है , लेकिन छोटी बछिया मर सकती है ऐसे वार से । आपका दिल से आभार ..
बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्माजी ..
बहुत सुंदर भावपूर्ण और अत्यधिक मार्मिक लघुकथा. बधाई आदरणीय विनय जी
आदरणीय , एक मार्मिक कथा के लिये आपको बधाइयाँ ॥
आ० विनय जी
परम्परागत रूढ़ियों पर आधारित यह कथा बहुत ही अच्छी है . बस ईंट से एक ही वार में बछिया का मर जाना (असंभव तो नहीं है )पर कहानी के यथार्थवाद को आहत अवश्य करता है . सादर .
दरअसल यह पाप पुन्य सभी गरीबों असहायों के लिए ही बनाये गए हैं ...आपने बखूबी चित्रण किया है फसल बर्बाद होने के पीछे भी हमारा पाप या पूर्व जन्म का फल ही होता है ...ऐसा ही तो सिखया गया है हमें ...
एह लघुकाथा के प्रस्तुति खातिर दिल से बधाई.. |
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