शक्ति छंद (नेपाल भूकंप )
अभी फूल पूरे खिले भी न थे
नई जिंदगी से मिले भी न थे
चली बेरहम वक़्त की आरियाँ
कटे शीश धड़ से मिटी क्यारियाँ
कहर बन फटी थरथराती जमी
जहाँ सांस आई वहीँ पे थमी
दिखाई अजब काल ने क्रूरता
फिरा क्रुद्ध यमराज यूँ घूरता
निवाले कई काल के हैं बने
दबे हर जगह जिस्म खूँ से सने
बचा जो यहाँ ढूँढता आसरा
सहारा बना एक का दूसरा
बचे काल से एक भाई बहन
सिसकते हुए घाव खाए गहन
हुए मूल से देख महरूम ये
लिपटते हुए आज मासूम ये
न माँ का पता ना पिता का पता
नहीं सोच पाए हुई क्या खता
कहर कुदरती बाढ़ क्या जलजला
कहाँ उम्र ये सोचने की भला
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जीतेन्द्र भैया,आपको छंद पसंद आये मेरा लिखना सफल हुआ दिल से आभारी हूँ |
आ० समर कबीर भाई जी,आपकी इस उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से शुक्रिया मेरा लिखना सार्थक हुआ सादर|
आ० लक्ष्मण रामानुज जी,छंद पर आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार|
आदरणीया राजेश कुमारी जी ,शक्ति छंद पर एक जबरदस्त रचना है यह , बहुत बधाई आपको ,और आभार इससे शक्ति छंद सीखने को भी मिलेगा ! सादर
बहुत मर्मस्पर्शी रचना मै'म
नेपाल भूकंप का शक्ति छंद में जीवंत चित्रण हुआ है आ० हार्दिक बधाई!
आ0 राजेश'दी जी, बहुत सुंदर छंद मे करुणा को स्वर मिला, उत्क्रुष्ट भाव के लिये हार्दिक बधाई. सादर
उम्दा छंद रचना के लिए बधाई आपको | सादर |
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