For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :-गले प रख के वो तलवार बोले

बह्र :- मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन फ़ऊलुन

गले प रख के वो तलवार बोले
वही कहना जो ये सरकार बोले

हमें बर्बाद कर देगा तिरा सच
मिरी बस्ती के इज़्ज़तदार बोले

हमारा ख़ानदानी वस्फ़ है ये
हमेशा जानिब-ए-हक़दार बोले

कई नामों से हमको जानते हैं
कोई तूफ़ाँ,कोई मंझधार बोले

बुराई पीठ के पीछे करेगा
मिरे मुँह पर ज़रा इक बार बोले

है मुझ को आरज़ू उस हमसफ़र की
जो वीरानों को भी गुलज़ार बोले

क़ुसूर इन शाईरों का भी नहीं जी
वही देंगे जो ये बाज़ार बोले

"समर" तुम दुश्मनों पर टूट पड़ना
सिपह सालार जब यलग़ार बोले

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 757

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on May 26, 2015 at 11:09pm
जनाब सौरभ पांडे जी,आदाब,आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर धन्य भी हुवा और मुतमइन भी,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 26, 2015 at 9:01pm

वाह वाह ! मतले से शुरु हुआ कमाल मक्ते तक बरकरार रहा..
मतले के लिए विशेष बधाई तो कह ही रहा हूँ, इन शेरों को भी बार-बार पढ रहा हूँ --
हमें बर्बाद कर देगा तिरा सच
मिरी बस्ती के इज़्ज़तदार बोले

कई नामों से हमको जानते हैं
कोई तूफ़ाँ,कोई मंझधार बोले

है मुझ को आरज़ू उस हमसफ़र की
जो वीरानों को भी गुलज़ार बोले

हार्दिक शुभकामनाएँ आदरणीय ..

Comment by Samar kabeer on May 16, 2015 at 11:05pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 16, 2015 at 11:05pm
जनाब हरी प्रकाश दुबे जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 16, 2015 at 11:04pm
जनाब वीनस केसरी जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 16, 2015 at 9:49am

क्या बात है ! आदरनीय समर कबीर भाई , पूरी ग़ज़ल बे मिसाल कही है , एक एक शे र  के लिये अलग अलग मुबारक बाद कुबूल करें ॥ बस पढ़ के मज़ा आ गया  ।

Comment by Hari Prakash Dubey on May 16, 2015 at 9:39am

आदरणीय समर कबीर सर ,संपूर्ण रचना ही शानदार है ,हार्दिक  बधाई आपको ! सादर 

Comment by वीनस केसरी on May 16, 2015 at 1:13am

जिंदाबाद ग़ज़ल है
वाह वाह .. एक एक शेर पर हज़ार बार दाद

एक बात की और ध्यान दिलाना चाहूंगा
मफ़ाइलुन - १२१२
मफ़ाईलुन - १२२२

Comment by Samar kabeer on May 15, 2015 at 2:45pm
जनाब श्री सुनील जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 15, 2015 at 2:45pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी ,आदाब, ग़ज़ल में आपकी शिर्कत और हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service