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अधूरे गीत(कहन)______________मनोज कुमार अहसास

मन के सारे गीत अधूरे,फिर से तुझ को अर्पण है
तुझको मन की बात कहूँ मैं,ऐसा अब फिरसे मन है

मर्यादा का एक महल है जिसमे विरह का आँगन है
ख़ामोशी की एक चिता है पल पल जलता जीवन है

संबंधो में प्रेम कहाँ है प्रेम की अब वो रीत कहाँ
मित्र नयन से जुदा है काजल और तरसता दर्पण है

दुःख,पीड़ा,अवसाद,तपस्या,करुणा,संयम और साहस
उस जीवन में नैसर्गिक है इस जीवन में आयोजन है

टूट गयी है डोर विरह की कैसे कहन का रूप सजे
जीवन की इस भाग दौड़ में बस बेकार का क्रंदन है
मौलिक और अप्रकाशित








आदरणीय संपादक जी
राजस्थान से प्रकाशित श्री अनिल अनवर जी द्वारा सम्पादित पत्रिका मरू भूमि नमक पत्रिका में प्रकाशित करने
यह रचना अर्थात कहन भेजी गयी थी
अभी तक हमारी जानकारी अनुसार प्रकाशित नहीं हुई है

Views: 495

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Comment by मनोज अहसास on May 19, 2015 at 4:13pm
आप सभी को प्रणाम करता हूँ और आभार प्रगट करता हूँ
सादर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2015 at 3:47pm

अच्छा प्रयास है . सादर .

Comment by babita choubey shakti on May 19, 2015 at 3:28pm
बहुत ही सुंदर कविता आदरणीय जी बधाई
Comment by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 11:54pm
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 18, 2015 at 8:16am

आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी भावपूर्ण रचना के लिये बधाई ...सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 17, 2015 at 5:49pm

बहुत खूब ..हार्दिक बधाई ..

Comment by मनोज अहसास on May 17, 2015 at 2:50pm
बहुत आभार सर
Comment by Sushil Sarna on May 17, 2015 at 2:32pm

अंतर्मन के भावों को चित्रित करता बहुत सुंदर प्रेम  है। हार्दिक बधाई। 

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