" हेलो , पापा , आप समय से अपनी दवा खा लेना "| बेटी के शब्द सुनकर उन्होंने सुकून की सांस ली | अभी कल ही उसने फोन नहीं किया तो एकदम परेशान हो गए और वापस आते ही पूरा लेक्चर दे डाला |
आज भी हड़बड़ी में वो भूल ही गयी थी पर एक बुज़ुर्ग को सामने देखते ही याद आ गया | पता तो उसको भी है और पापा को भी है , फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , आपकी टिप्पणी से बहुत बल मिलता है..
आज विद्रूप हो चले समाज के अपने व्यवहार हैं. इस विन्दु को आपकी लघुकथा ने स्थान दिया है. इसमें आप सफल भी रहे हैं, आदरणीय. हार्दिक बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी , इतना विस्तृत विश्लेषण करने का | रोज रोज फोन करके ये बताना कि मैं सकुशल पहुँच गयी शायद हो नहीं पाता और इस तरह के तरीके भी अपना लेते हैं लोग | एक बार फिर से आभार..
सरल और सुन्दर। बधाई, विनय जी।
सही है... जब तक अपनों का गंतव्य तक सकुशल पहुंच जाने का फोन नहीं आ जाता ..मन बेचैन ही रहता है , बात यदि बेटियों , बहुओं, बहनों की हो तो अपने सुकून में तभी आते हैं जब ठीक से पहुँच जाने सूचना मिल जाए.... लेकिन इसमें बहाना बना कर कुशलता सन्देश देना समझ नहीं आया , ये तो पिता द्वारा हर पुत्री से सीधे शब्दों में ही अपेक्षित होता है, और पुत्री भी जिम्मेदारी समझ बिना बहाना बनाए साफ़ साफ़ सन्देश दे सकती है..
कथ्य सामयिक है.... सशक्त है... इसके लिए बहुत बहुत बधाई आ० विनय कुमार सिंह जी
बिलकुल ठीक कहा आपने , बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी..
आदरणीय विनय जी,
अगर बुजुर्गों को देख कर पिता की याद आ जाती है, तो फ़िर महिलाओं को देख कर अपने घर की महिलाओं की याद आ जाये तो ना जाने कितने बुजुर्गों को डर की गोलॊ और कुशलता के फ़ोन की आवश्यकता नहीं रहेगी.
सादर.
फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है |--- यह पञ्च लाईन सन्देश तो अवश्य देती है , आपको बधायी .
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