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" हेलो , पापा , आप समय से अपनी दवा खा लेना "| बेटी के शब्द सुनकर उन्होंने सुकून की सांस ली | अभी कल ही उसने फोन नहीं किया तो एकदम परेशान हो गए और वापस आते ही पूरा लेक्चर दे डाला |
आज भी हड़बड़ी में वो भूल ही गयी थी पर एक बुज़ुर्ग को सामने देखते ही याद आ गया | पता तो उसको भी है और पापा को भी है , फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है |
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 27, 2015 at 8:52pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , आपकी टिप्पणी से बहुत बल मिलता है..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 27, 2015 at 8:37pm

आज विद्रूप हो चले समाज के अपने व्यवहार हैं. इस विन्दु को आपकी लघुकथा ने स्थान दिया है. इसमें आप सफल भी रहे हैं, आदरणीय. हार्दिक बधाई

Comment by विनय कुमार on May 20, 2015 at 12:56pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी..

Comment by विनय कुमार on May 20, 2015 at 12:55pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी , इतना विस्तृत विश्लेषण करने का | रोज रोज फोन करके ये बताना कि मैं सकुशल पहुँच गयी शायद हो नहीं पाता और इस तरह के तरीके भी अपना लेते हैं लोग | एक बार फिर से आभार..

Comment by vijay nikore on May 20, 2015 at 4:10am

 सरल और सुन्दर। बधाई, विनय जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 19, 2015 at 10:53pm

सही है... जब तक अपनों का गंतव्य तक सकुशल पहुंच जाने का फोन नहीं आ जाता ..मन बेचैन ही रहता है , बात यदि बेटियों , बहुओं, बहनों की हो तो अपने सुकून में तभी आते हैं जब ठीक से पहुँच जाने सूचना मिल जाए.... लेकिन इसमें बहाना बना कर कुशलता सन्देश देना समझ नहीं आया , ये तो पिता द्वारा हर पुत्री से सीधे शब्दों में ही अपेक्षित होता है, और पुत्री भी जिम्मेदारी समझ बिना बहाना बनाए साफ़ साफ़ सन्देश दे सकती है..

कथ्य सामयिक है.... सशक्त है... इसके लिए बहुत बहुत बधाई आ० विनय कुमार सिंह जी 

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 9:38pm

बिलकुल ठीक कहा आपने , बहुत बहुत आभार आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी..

Comment by विनय कुमार on May 19, 2015 at 9:37pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी..

Comment by Shubhranshu Pandey on May 19, 2015 at 6:37pm

आदरणीय विनय जी, 

अगर बुजुर्गों को देख कर पिता की याद आ जाती है, तो फ़िर महिलाओं को देख कर अपने घर की महिलाओं की याद आ जाये तो ना जाने कितने बुजुर्गों को डर की गोलॊ और कुशलता के फ़ोन की आवश्यकता नहीं रहेगी.

सादर.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 19, 2015 at 4:12pm

फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है |--- यह पञ्च लाईन सन्देश तो अवश्य देती है , आपको बधायी .

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