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मजदूर कह औरत की तौहीन मत कर,
गम हैं बहुत उसे,और गमगीन मत कर।
उसके आँसू लबरेज हैं तीखी कथाओं से,
अब उन्हें देख,ज्यादा नमकीन मत कर।
खूब धुली अबतक कलम उसकी धार में,
लेखनी को देख,ज्यादा हसीन मत कर।
अर्थ की माफिक उसकी हकीकत कब ?
अर्थ वह खुद, खुद को जहीन मत कर।
नूर बख्शती रही वह ज़माने को कबसे,
छोड़ फिकरे,फिर पर्दानशीन मत कर।
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन(01/05/2015)

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Comment by Manan Kumar singh on June 4, 2015 at 6:20pm

मैं तो बस इतना कहूँगा कि क्षर हूँ,अक्षर हूँ। 

काल के कपाल का एक निरक्षर हस्ताक्षर हूँ। सादर 

Comment by Manan Kumar singh on June 2, 2015 at 10:54am

आ॰ मित्रो, स्नेह-प्रदर्शन हेतु आभार। गजल के बारे में कक्षा में ज्ञानार्जन चल रहा है, इसीलिए अभी कवितायें ही लिखी जा रही हैं, सदर। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 10:57am

मननजी, आप पोस्ट डाल रहे हैं और वे सभी एप्रुव हो रहे हैं. कारण कि आप जैसे नव-हस्ताक्षर का मनोबल बढ़ा रहे. हम भी आपको लिखने के लिए बधाई कह रहे हैं. लेकिन आप ग़ज़ल की बारीकियों से पूरी तरह अनजान हैं. ऐसा क्यों है ?
शुभ-शुभ

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 12:59pm

वाह! सुन्दर प्रस्तुति!बधाई आ० मनन जी!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 25, 2015 at 3:58pm

अच्छी कोशिश की है आपने , सस्नेह .

Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 3:22pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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