For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जरुरी है क्या कि प्रेम हो तो विवाह भी हो?
गर कहीं हो जाये तो आगे निर्वाह भी हो?
आज का प्रेम है,पुरखों की बात पुरानी हुई,
जरुरी है क्या सबके मन में उछाह भी हो?
साथ का सिलसिला चलता रहेगा आगे भी,
जरुरी है क्या तेरे लिए मन में कराह भी हो?
जरूरतों का कुछ भी तो नाम होना चाहिए,
ढेर-सारी जरूरतों के आगे तो विवाह भीहो!
प्रेम हो,फिर विवाह,चाहे विवाह हो तब प्रेम,
प्रेमपूर्ण हो,फिर वही विवाह तो विवाहभी हो!
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन

Views: 1223

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on June 4, 2015 at 6:14pm

जी मिश्राजी, विवाह शब्द के साथ न्याय करने का यथासंभव प्रयास किया गया है यहाँ, सादर। 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 12:30pm

सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई आ०  मनन जी!

Comment by Manan Kumar singh on May 26, 2015 at 10:32pm

चूकवश टिप्पणी का कुछ अंश विलोप हो गया। हाँ, इतना कह सकता हूँ कि कविता की अंतिम दो पंक्तियाँ भाव स्पष्ट कर देती होंगी शायद,सादर। 

Comment by Manan Kumar singh on May 25, 2015 at 8:11pm
आदरणीय मित्रों की टिप्पणियाँ वस्तुतः प्रेरित करनेवाली हैं।बहुत ही सम्यक और घनिष्ठता पूर्ण स्नेहिल व्यवहार देने के लिए आप सबका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूँ।अब रही बात उक्त कविता में सँजोये भाव की तो इसकी बावत मैं इतना ही कह सकता हूँ कि यह रचना प्रेम और विवाह के तत्वों को ध्यान में रखकर आविर्भूत हुई है; हाँ स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध में यहाँ विवाह की अवधारणा को चिन्हित करते हुए इतना ही कहने का प्रयास हुआ है कि विवाह यदि प्रेम समर्थित हो तो एक आदर्श है,सम्बन्ध की मजबूती है।बहुत-से उदाहरण हो सकते हैं जहाँ प्रेम होते हुए भी विवाह का रिवाज पूरा नहीं हो पता है ,प्रेम चलते रहता है।अब उस स्थिति पर गौर करते हैं जहाँ विवाह का रिवाज तो पूरा हो चुका होता है,चल भी रहा होता है,पर वही निभते हुए बस.........
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 25, 2015 at 4:18pm

मनन जी

अधिक लिखने से बेह्तर है  एक ही रचना पर कंसंट्रेट करें . आप अपने को नहीं दूसरो को प्रभावित करने के लिए लिख रहे है यह ध्यान में रखें  .  कभी आप बहुत अच्छा लिख जाते है पर अगली पंक्ति में बरकरार  नहीं रह पाते i इसका एक ही कारण है समय कम देना . आपकी रचनाएं  समय और चिंतन मांगती हैं . सादर .

Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 3:09pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

"अलग रंग है आपकी लेखनी का
मैं सब से यही तो कहा चाहता हूँ"
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 25, 2015 at 11:54am

इस रचना क्या औचत्य है भाई  मनन सिंह जी | प्रेम तो सभी करते है पशु पक्षी सन्यासी ब्रह्मचारी | विवाहित बंधन एक सामाजिक रिवाज या  संस्कार है जो भारत  ही नहीं सम्पूर्ण दुनिया में अपने अपने रीति रिवाज और  धार्मिक आस्था पर आधारित है | अगर ब्रह्मचारी रहना है तो विवाह का कोई बंधन नहीं है | विवाह करना, न करना, निर्वाह करना न करना ये सब मनुष्य के निजी विचारों पर निर्भर करते है | एक सामाजिक प्राणी विवाह को पवित्र बंधन मानता है तो निर्वाह करना अनिवार्य समझता है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service