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"वकील साहब! जो चाहे करो लेकिन मेरे बेटे को सजा नही होनी चाहिये।" कहते हुये काली बाबू ने चेक बुक सामने रख दी।
"काली बाबू। मीडीया और 'एविडेन्स' भी तुम्हारे बेटे के खिलाफ है। अब तो एक ही रास्ता है 'पीड़िता' से आपके बेटे की शादी और उसकी तरफ से केस वापसी की दरख्वास्त।" वकील साहब ने ठंडी साँस भर कर हथियार डाल दिये।......................................

"लोगो की सवालिया नजरे, परिवार का मान और तुम्हारी बेटी का भविष्य। इन सबको देखा जाये तो मेरी इस 'आफर' से बेहतर कोई रास्ता नही है।" काली बाबू पूरे परिवार को शीशे में उतारने की कोशिश में थे।
"जी नही, ये नही हो सकता।" परिवार की चुप्पी तोड़ते हुये 'वो' तीखी आवाज में बोल पड़ी।
"आप चाहते है जो अब मेरी इच्छा के खिलाफ हुआ वही सब मैं जीवन भर एक रिश्ते के नाम पर बर्दाश्त करूँ, कभी नही?"
उसके मन का आक्रोश अत्मविश्वास में बदल, उसकी आवाज में झलकने लगा।
"मैंने तो अपना भविष्य अब लोगो की सवालिया नजरो में अपने जैसी 'पीड़ितो' को बचा कर एक नया रास्ता दिखाना और ऐसे 'बीमार' लोगो का इलाज करवाना ही बना लिया है।"
"रहा आप के बेटे का भविष्य, वो तो अब आप जानते ही है।"
काली बाबू को बेटे का भविष्य अब साक्षात दिखाई देने लगा था।

'विरेन्दर वीर मेहता'

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by shree suneel on May 28, 2015 at 9:11am
आदरणीय विरेन्दर मेहता जी, सार्थक, साहसिक निर्णय का संदेश देती लघु-कथा के लिए बधाईयाँ आपको.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 27, 2015 at 10:50pm

बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीय विरेन्दर वीर मेहता जी आपको हार्दिक बधाई

Comment by shikha kaushik on May 27, 2015 at 9:12pm

सार्थक सन्देश प्रेषित करती लघु-कथा हेतु बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 27, 2015 at 8:05pm

बहुत बहुत बढ़िया आदरणीय मेहता जी बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 27, 2015 at 11:57am

बढ़िया मेहता जी

अंतिम चार संवाद तो पीडिता के ही हैं फि भी इन्हें पृथक दर्शाया गया . अपेक्षित इस प्रकार था -

"आप चाहते है जो अब मेरी इच्छा के खिलाफ हुआ वही सब मैं जीवन भर एक रिश्ते के नाम पर बर्दाश्त करूँ, कभी नही?"-
उसके मन का आक्रोश आत्मविश्वास में बदल, उसकी आवाज में झलकने लगा-"मैंने तो अपना भविष्य अब लोगो की सवालिया नजरो में अपने जैसी 'पीड़ितो' को बचा कर एक नया रास्ता दिखाना और ऐसे 'बीमार' लोगो का इलाज करवाना ही बना लिया है।रहा आप के बेटे का भविष्य, वो तो अब आप जानते ही है।"

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 10:23am

वाह! सुन्दर लघुकथा पर बधाई!भाई वीर मेहता जी

Comment by kanta roy on May 27, 2015 at 6:16am
बहुत ही उम्दा लेखन आदरणीय वीर मेहता जी
Comment by विनय कुमार on May 27, 2015 at 3:20am

वाह , गज़ब की लघुकथा कही है आदरणीय वीर मेहता जी । बहुत ही बेहतरीन , एक अलग ही ट्रीटमेंट इस विषय का , बहुत बहुत बधाई..

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