"वकील साहब! जो चाहे करो लेकिन मेरे बेटे को सजा नही होनी चाहिये।" कहते हुये काली बाबू ने चेक बुक सामने रख दी।
"काली बाबू। मीडीया और 'एविडेन्स' भी तुम्हारे बेटे के खिलाफ है। अब तो एक ही रास्ता है 'पीड़िता' से आपके बेटे की शादी और उसकी तरफ से केस वापसी की दरख्वास्त।" वकील साहब ने ठंडी साँस भर कर हथियार डाल दिये।......................................
"लोगो की सवालिया नजरे, परिवार का मान और तुम्हारी बेटी का भविष्य। इन सबको देखा जाये तो मेरी इस 'आफर' से बेहतर कोई रास्ता नही है।" काली बाबू पूरे परिवार को शीशे में उतारने की कोशिश में थे।
"जी नही, ये नही हो सकता।" परिवार की चुप्पी तोड़ते हुये 'वो' तीखी आवाज में बोल पड़ी।
"आप चाहते है जो अब मेरी इच्छा के खिलाफ हुआ वही सब मैं जीवन भर एक रिश्ते के नाम पर बर्दाश्त करूँ, कभी नही?"
उसके मन का आक्रोश अत्मविश्वास में बदल, उसकी आवाज में झलकने लगा।
"मैंने तो अपना भविष्य अब लोगो की सवालिया नजरो में अपने जैसी 'पीड़ितो' को बचा कर एक नया रास्ता दिखाना और ऐसे 'बीमार' लोगो का इलाज करवाना ही बना लिया है।"
"रहा आप के बेटे का भविष्य, वो तो अब आप जानते ही है।"
काली बाबू को बेटे का भविष्य अब साक्षात दिखाई देने लगा था।
'विरेन्दर वीर मेहता'
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है आदरणीय विरेन्दर वीर मेहता जी आपको हार्दिक बधाई
सार्थक सन्देश प्रेषित करती लघु-कथा हेतु बधाई
बहुत बहुत बढ़िया आदरणीय मेहता जी बधाई आपको
बढ़िया मेहता जी
अंतिम चार संवाद तो पीडिता के ही हैं फि भी इन्हें पृथक दर्शाया गया . अपेक्षित इस प्रकार था -
"आप चाहते है जो अब मेरी इच्छा के खिलाफ हुआ वही सब मैं जीवन भर एक रिश्ते के नाम पर बर्दाश्त करूँ, कभी नही?"-
उसके मन का आक्रोश आत्मविश्वास में बदल, उसकी आवाज में झलकने लगा-"मैंने तो अपना भविष्य अब लोगो की सवालिया नजरो में अपने जैसी 'पीड़ितो' को बचा कर एक नया रास्ता दिखाना और ऐसे 'बीमार' लोगो का इलाज करवाना ही बना लिया है।रहा आप के बेटे का भविष्य, वो तो अब आप जानते ही है।"
वाह! सुन्दर लघुकथा पर बधाई!भाई वीर मेहता जी
वाह , गज़ब की लघुकथा कही है आदरणीय वीर मेहता जी । बहुत ही बेहतरीन , एक अलग ही ट्रीटमेंट इस विषय का , बहुत बहुत बधाई..
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