जीवन.....
हरी पत्तियो से ढके
और फलों से लदे
पंछियोंं के घने बसेरे
आस-पास वृहद सागर सा लहराता वन,
आल्हादित हैं पवन-बहारें
सॉझ-सवेरे झंकृत होते
पंछियो के कलरव स्वर
नदियों की कल-कल,
आते-जाते नट कारवॉ
उड़ते गुबार, मद्धिम होती रोशनी, आँख मींचते बच्चे
तम्बू में घुस कर खोजते, दो वक्त की रोटी...
पेट की आग का धुआँं, करता गुबार
रूॅधी सांसों के कुहराम
आधी रोटी के लिए करते द्वन्द
तलवारें चमक जाती, बिजली सी
धरा पर मासूम चटाईयों के बिछते ही
चूल्हा बुझ जाता
सो जाती हैं आखें
अपलक सुनहरे स्वप्न में.....
स्वर्ण हिरण की अव्यक्त व्यथा
ज्येष्ठ माह की अग्नि में झुलसता गोश्त
मॅुह तक आ कर फिर गायब हो जाता
नन्दन वन सा आनन्द.....
गूंगों के मुख का बतासा ....नींद खुलते ही...
सुस्वाद की घनी छॉंव
पथ में बिखर कर भी सहेजती
जीवन ....।
के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 वामनकर भाई जी, आपका हृदयतल से बहुत-बहुत आभार. सादर
आदरणीय केवल जी इस भावपूर्ण और अनुभूतिपरक रचना पर हार्दिक बधाई निवेदित है....
आ0 सौरभ सर जी, पहले इस कविता का शीर्षक था "वृक्ष" बाद में इसको "जीवन" कहा....मैने सोचा जीवन और वृक्ष में ज्यादा अंतर नही होता है, वृक्ष और जीवन में आत्मा-परमात्मा सा साम्य ही है. आपकी दिव्य दृष्टि व अंतर्भाव के लिये सहृदय आभार, सादर
उड़ते गुबार, मद्धिम होती रोशनी, आँख मींचते बच्चे
तम्बू में घुस कर खोजते, दो वक्त की रोटी...
पेट की आग का धुआँं, करता गुबार
रूॅधी सांसों के कुहराम
आधी रोटी के लिए करते द्वन्द
तलवारें चमक जाती, बिजली सी
धरा पर मासूम चटाईयों के बिछते ही
चूल्हा बुझ जाता
सो जाती हैं आखें
अपलक सुनहरे स्वप्न में.....
स्वर्ण हिरण की अव्यक्त व्यथा
ज्येष्ठ माह की अग्नि में झुलसता गोश्त
मॅुह तक आ कर फिर गायब हो जाता
नन्दन वन सा आनन्द.....
गूंगों के मुख का बतासा ....नींद खुलते ही...
सुस्वाद की घनी छॉंव
पथ में बिखर कर भी सहेजती
जीवन ....।
उपर्युक्त पंक्तियाँ स्वतः संप्रेष्य हैं.
वैचारिकता के प्रति हार्दिक शुभकामनाएँ
आ0 गोपाल भाई जी, सादर प्रणाम! एक कवि की अंतर्दशा विस्फोटक सी होती है, वह कब? कहां? कैसे ? चोट करता है. यह कविता ही स्पष्ट करती है. आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार. सादर
आ0 बागी सर जी, सादर प्रणाम! कविता पर सकारात्मक एवम विस्तृत सम्वेदनात्मक भावार्थ को विस्तारित करने हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार. सादर
आ0 श्याम नारायण भाई जी, सादर प्रणाम! कविता पर सकारात्मक टिप्पणी हेतु आपका बहुत-बहुत आभार. सादर
आ0 समर भाई जी, आदाब! कविता पर आपकी उपस्थिति मात्र से ही मेरी आत्मा में ऊर्जा का संचार हो जाता है आपका बहुत-बहुत आभार. सादर
आ0 मोहन भाई जी, प्रणाम! कविता की गम्भीरता व महत्ता पर आपके अमूल्य शब्द औषधि का कार्य कर रहे हैं. आपका बहुत-बहुत आभार. सादर
बड़ी ही अनुभूतिपरक रचना है , बधाई .
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